अव्वल तो आधे लोगों को समझ ही नहीं आयेगा और अगर आ भी गया, तो कोई इस डर से पूछेगा नहीं कि शायद फिट हो रहा हो और उसे ही न बाद में मूर्ख बनना पड़े.
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यह भी याद आ रहा है भक्त कवियों ने स्वयं को अगर ' मूरख ' कहा है तो यह कम बड़ी बात नहीं है क्योंकि विद्वान बने रहना कठिन काम है लेकिन मूर्ख बने रहना और भी कठि न.ज ान बूझकर मूर्ख बनना गूंगे का गुड़ है.