1912 में बैरी द्वारा बनायी गयी मूल प्रतिमा के बाद, मूर्तिकारजॉर्ज फ्रैम्पटन द्वारा एक मोल्ड से सात मूर्तियाँ तैयार की गयी हैं.
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कहते हैं आज भी महावीर की मूल प्रतिमा का मुखमण्डप दिन में अलग, शाम को अलग तथा प्रातः बिल्कुल अलग प्रकार से बन जाता है।
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प्राचीन देवालय की बेशकीमती मूल प्रतिमा के दो दशक पूर्व चोरी हो जाने के बाद से ही वरहा अवतार मंदिर की सेवा-पूजा प्रभावित हो रही है।
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उत्सेध में जगती या चबूतरा, उसके ऊपर पीठ और अधिष्ठान/वेदिबंध, जिस पर गर्भगृह की मूल प्रतिमा स्थापित होती है, फिर दीवारें-जंघा और उस पर छत-शिखर होता है।
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अब वेटिकन में पादरियों के छोटे गिरजे में मौजूद मूल प्रतिमा को 13 वीं सदी का कालांकित किया गया है, हालांकि परंपराओं का दावा है कि यह काफी पुरानी है.
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उत्सेध में जगती या चबूतरा, उसके ऊपर पीठ और अधिष्ठान / वेदिबंध, जिस पर गर्भगृह की मूल प्रतिमा स्थापित होती है, फिर दीवारें-जंघा और उस पर छत-शिखर होता है।
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दूसरी शताब्दी की कृष्णकालीन गंधार कला का प्रतिनिधित्व करती मदोन्मत (नशे में डूबी) स्त्री जिसे उसका पति सहारा देकर उठाता नजर आ रहा है, मथुरा के मोहाली गांव से मिली मूल प्रतिमा की प्रतिकृति है।
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इसके फर्श पर सुंदर टाईल्स लगे हैं, इसी भवन की दक्षिण दिशा में एक छोटा सा कमरा है, जहां पर मांडवगढ की मूल प्रतिमा बनी हैं पुस्तकों में इस बारे में यह उल्लेख है।
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भक्तों के विश्वास और आस्था का अटूट केंद्र होने का कारण यह है कि जिन राजा सुरथ द्वारा मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित किये जाने का उल्लेख पुराणों में मिलता है, वह मूल प्रतिमा यही है।
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दूसरी शताब्दी की कृष्णकालीन गंधार कला का प्रतिनिधित्व करती मदोन्मत (नशे में डूबी) स्त्री जिसे उसका पति सहारा देकर उठाता नजर आ रहा है, मथुरा के मोहाली गांव से मिली मूल प्रतिमा की प्रतिकृति है।