लोहे को गलाने आदि के लिए जो पात्र काम में आता है वह मूषा (‘ रिटार्ट ') कहलाता है, जो विशेष तापसह मिट्टी (रिफ्रेक्टरीज़) का बनाया गया पात्र है।
22.
अपुनर्भव भस्म-किसी धातु की भस्म को गुड़, धुंधची के चूर्ण, सुहागा और घृत में मिलाने के बाद मूषा में रखकर अग्नि फूंकने पर यदि भस्म से धातु अलग न हो तो ऐसे भस्म को अपुनर्भव भस्म कहते हैं।
23.
‘‘ साम, सौण्डाल तथा मौतर्वक तीनों लोह जातियों के क्रम से तीन, आठ तथा दो भाग मात्राओं को (इस मिश्र धातु में तीनों लोहों का अनुपात है) टंकण सुहागा के साथ मूषा (रिटार्ट) में रखकर 272 कक्ष्य दर्जे की उष्णता से गलाने पर वह राजलोहा बन जाता है।