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मेषादि उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
21.यदि युग या कल्प के प्रारंभ में ग्रह मेषादि में हों तो बीच के दिन (अहर्गण) ज्ञात होने से मध्यम ग्रह को त्रैराशिक से निकाला जा सकता है।

22.वास्तुशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री (मो ब.-0 9024390067) के अनुसार जन्म कुंडली में शनि का मेषादि राशियों में स्थित होने का फल इस प्रकार है:-

23.भारतीय ज्योतिष पद्धति (Vedic Astrology) में अदृष्ट फल का विचार अदृष्ट निरयण मेषादि ग्रहों या निरयण पद्धति (Nirayan Astrololgy System) और ग्रह-वेध, ग्रहण सहित दृष्ट फल का विचार दृष्ट सयन मेषादि ग्रहों के आधार पर होता है।

24.भारतीय ज्योतिष पद्धति (Vedic Astrology) में अदृष्ट फल का विचार अदृष्ट निरयण मेषादि ग्रहों या निरयण पद्धति (Nirayan Astrololgy System) और ग्रह-वेध, ग्रहण सहित दृष्ट फल का विचार दृष्ट सयन मेषादि ग्रहों के आधार पर होता है।

25.भारतीय ज्योतिष पद्धति (Vedic Astrology) में अदृष्ट फल का विचार अदृष्ट निरयण मेषादि ग्रहों या निरयण पद्धति (Nirayan Astrololgy System) और ग्रह-वेध, ग्रहण सहित दृष्ट फल का विचार दृष्ट सयन मेषादि ग्रहों के आधार पर होता है।

26.भारतीय ज्योतिष पद्धति (Vedic Astrology) में अदृष्ट फल का विचार अदृष्ट निरयण मेषादि ग्रहों या निरयण पद्धति (Nirayan Astrololgy System) और ग्रह-वेध, ग्रहण सहित दृष्ट फल का विचार दृष्ट सयन मेषादि ग्रहों के आधार पर होता है।

27.पहले श्लोक से प्रकट होता है कि क्रांतिवृत्त के जिस बिंदु को आर्यभट ने मेषादि माना है वह वसंत-संपात-बिंदु था, क्योंकि वह कहते हैं, मेष के आदि से कन्या के अंत तक अपमंडल (क्रांतिवृत्त) उत्तर की ओर हटा रहता है और तुला के आदि से मीन के अंत तक दक्षिण की ओर।

28.पहले श्लोक से प्रकट होता है कि क्रांतिवृत्त के जिस बिंदु को आर्यभट ने मेषादि माना है वह वसंत-संपात-बिंदु था, क्योंकि वह कहते हैं, मेष के आदि से कन्या के अंत तक अपमंडल (क्रांतिवृत्त) उत्तर की ओर हटा रहता है और तुला के आदि से मीन के अंत तक दक्षिण की ओर।

29.अतएवं मेषादि राशियों पर शनि का पाया इस प्रकार रहेगा:-मेष, कन्या, मकर राशि पर रजत पाया शुभ वृष, कर्क धनु राशि पर सोने का पाया मिश्रित मिथुन, तुला, कुंभ राशि पर लोहे का पाया अशुभ सिंह, वृश्चिक, मीन राशि पर ताँबे का पाया शुभफल दायक रहेगा।

30.1. राशियों की सृष्टि-स्थिति विनाश संज्ञा (त्रिस्फुट-सूर्य-चंद्र व आरूढ़ लग्न स्पष्ट) मेषादि चार राशियां (1, 2, 3, 4) सृष्टि संज्ञक, सिंह आदि राशियाँ (5, 6, 7, 8) स्थिति संाक, धनु आदि चार राशियां (9, 10, 11, 12) विनाश संज्ञक होती हैं।

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