जिस शब्द में से प्रकाश नही फूटता उसको काग़ज़ पर मत रख कोरा सफ़ेद काग़ज़ काले अक्षरों से ज़्यादा मोल का होता है.
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मोल का तूड़ा, मोल की खल, मोल की ज्वा र.ध ीरे-धीरे सब कुछ सामान आने लगा. आने में पैसे तो लगने ही थे.
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पहले दूध में पानी की मिलावट होती थी, चलो मोल का दूध है करके आदमी एक बार चला लेता था, लेकिन अब तो पूरा-पूरा दूध ही नकली आ रहा है.
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एक व्यथा, एक द्वन्द निशानी है इस जीवन की, एक युग, एक समय की पेहचान कहानी है इनकी, इन्हें समझो तो कुछ अपना अतीत परिलाछित होगा, जीवन के प्रवाह के मोल का मोती संचित होगा,
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सचमुच आज दहेज़ प्रथा की समस्या विकराल दानव की तरह अपना मुंह फैलाती जा रही है और इसका निदान नहीं हो पा रहा है और दहेज़ प्रथा के नाम पर वरों का तौल मोल का रिवाज बढ़ता ही जा रहा है.
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उन्होंने कहा-“ लड़का लड़की सावधान ”! लड़के ने कहा कि पल भर की देरी है, लेकिन सावधान क्यों कहा गया? अरे! जीवन के मोल का यही अंत? चार छोकरी-चार छोकरे और एक पंडित-९ ।
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घर में मेरी मदद करती अम्मा ने बताया था कि, “ बिट्टी इंजन केर पानी मोल केर पानी होवे है ”... मोल का पानी... कीमत चुकाया हुआ पानी... आसमान का पानी... आस का पानी... अम्मा की आँखे अक्सर ही...
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घर में मेरी मदद करती अम्मा ने बताया था कि, “ बिट्टी इंजन केर पानी मोल केर पानी होवे है ”... मोल का पानी... कीमत चुकाया हुआ पानी... आसमान का पानी... आस का पानी... अम्मा की आँखे अक्सर ही...
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आप से असहमत हू | देशद्रोही ओ के खिलाफ की लड़ाई को आप देशद्रोही करार दे रहे है | वैसे भी आप और अख़बार का वजन इतना नही है की राजनीतिमे उस से कोई बदलाव या असर पैदा करे | खुद ही गुनगुनाते हो और खुद ही या आपस के बीस तीस मित्रो मे ही वाह वाह कहने के लिए उचित ये लेख को राष्ट्रीय मोल का मानना नामुमकिन है |
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' दूसरा सप्तक' से उदास वक़्तों में: नवतेज भारती उदास वक़्तों में भी, जुगनू लौ करते हैं सितारे टिमटिमाते हैं और कवि कविता लिखते हैं उदास वक़्तों में भी घास के तृण उगते हैं पक्षी गाते और फूल खिलते हैं उदास समय में भी लोग सपने लेते हैं दरिया बहते हैं और सूर्य उदय होता है 'ओ पंखुरी' से शब्द रोशनी वाले: नवतेज भारती जिस शब्द में से प्रकाश नही फूटता उसको काग़ज़ पर मत रख कोरा सफ़ेद काग़ज़ काले अक्षरों से ज़्यादा मोल का होता है.