सामान्य पाठ्यक्रमों के साथ साथ प्रदर्शन एवँ रचनाकर्म पर केन्द्रित डिप्लोमा से लेकर स्नातक, स्नातकोत्तर तथा डॉक्टोरल उपाधि-डी म्यूज़-का अनूठा कार्यक्रम आरम्भ किया गया जिसमें विभिन्न देशों के छात्रों ने प्रवेश लिया और आज यहाँ के पूर्व छात्र विश्व भर में संगीत संस्थानों में शीर्ष पदों पर कार्यरत हैं।
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सामान्य पाठ्यक्रमों के साथ साथ प्रदर्शन एवँ रचनाकर्म पर केन्द्रित डिप्लोमा से लेकर स्नातक, स्नातकोत्तर तथा डॉक्टोरल उपाधि-डी म्यूज़-का अनूठा कार्यक्रम आरम्भ किया गया जिसमें विभिन्न देशों के छात्रों ने प्रवेश लिया और आज यहाँ के पूर्व छात्र विश्व भर में संगीत संस्थानों में शीर्ष पदों पर कार्यरत हैं।
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यह एक दिलचस्प सवाल है, क्योंकि कई मित्र पर इस पर आपत्ति करते हैं, उनका मानना है कि कविता एक बार में ही जैसी लिखी जाए, वैसी ही होनी चाहिए, उस पर काम करने का अर्थ है कविता के आगमन के क्षणों की मन:स्थितियों या म्यूज़ का अनादर करना. मेरी नज़र में ऐसा नहीं है.)
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यह एक दिलचस्प सवाल है, क्योंकि कई मित्र पर इस पर आपत्ति करते हैं, उनका मानना है कि कविता एक बार में ही जैसी लिखी जाए, वैसी ही होनी चाहिए, उस पर काम करने का अर्थ है कविता के आगमन के क्षणों की मन:स्थितियों या म्यूज़ का अनादर करना. मेरी नज़र में ऐसा नहीं है.)
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यहां इसे किसी डिवाइन इन्फ़्लुएंस की तरह न लिया जाए, क्योंकि यह किसी कोह-खोह में नाजि़ल नहीं होती, किसी म्यूज़ की प्रतीक्षा नहीं करती, बल्कि समय, समाज, मन और मोहन से कवि का गहरा संबंध उसे वह दृष्टि देता है, जो देवतागण ओरैकल्स और रब्बाइ को दिया करते हैं.
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दसवीं तक की पढ़ाई उन्होंने चैन्नई में ही की और उसके बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में इण्टर, बी. ए. तथा एम. ए. की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं. इनके अलावा उन्होंने गन्धर्व महाविद्यालय से बी. म्यूज़. तथा प्रयाग संगीत समिति से एम. म्यूज़. की उपाधियां भी अर्जित कीं.
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दसवीं तक की पढ़ाई उन्होंने चैन्नई में ही की और उसके बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में इण्टर, बी. ए. तथा एम. ए. की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं. इनके अलावा उन्होंने गन्धर्व महाविद्यालय से बी. म्यूज़. तथा प्रयाग संगीत समिति से एम. म्यूज़. की उपाधियां भी अर्जित कीं.
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अग्रेज़ी के एक चालू जुमले का इस्तेमाल करते हुए आधुनिक चित्रकार की भूमिका में आमिर खान मुम्बई को ' माइ म्यूज़, माइ होअर, माइ बिलविड ' (' मेरी कलादेवी, मेरी छिनाल, मेरी माशूका ') कहता है जबकि फ़िल्म मुम्बई को इन तीनों में से कुछ भी सिद्ध नहीं कर पाती-वह है इन तीनों से कहीं बेतहाशा ज़्यादा.