अहिंसा का सामर्थ्य, यंत्रवाद का गांधी जी का विरोध और पश्चिमी सभ्यता तीनों के बारे में और सत्याग्रह की अंतिम भूमिका के बारे में भी पश्चिम के लोगों ने अपना मतभेद स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है।
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प्रत्ययवाद मन को पदार्थ से अलग करके परिवेशी वास्तविकता से स्वतंत्र, बंद, अंतर्जगत बना ड़ालता है, वहीं यंत्रवाद पदार्थ से मन के गुणात्मक अंतर को नहीं देख पाता और उसे मात्र तंत्रिकीय प्रक्रियाओं तक सीमित कर देता है।