| 21. | इस संसार में वह यथार्थ रूप से मनुष्य है जो सारे प्राणियों को अपनी आत्मा की भांति...
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| 22. | अन्तर्मुखी होकर अपनी आध्यात्म जगत की महानताओं के चित्रांकन द्वारा उन्हें यथार्थ रूप से महसूस करना चाहिए।
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| 23. | अन्तर्मुखी होकर अपनी आध्यात्म जगत की महानताओं के चित्रांकन द्वारा उन्हें यथार्थ रूप से महसूस करना चाहिए।
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| 24. | इस संसार में वह यथार्थ रूप से मनुष्य है जो सारे प्राणियों को अपनी आत्मा की भांति
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| 25. | बहिरंग साधना यथार्थ रूप से अनुष्ठित होने पर ही साधक को अंतरंग साधना का अधिकार प्राप्त होता है।
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| 26. | वे उस परम सत्ता से अधिक यथार्थ रूप से सबधित हो सके, लेकिन वे पहचान नहीं सके।
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| 27. | बहिरंग साधना यथार्थ रूप से अनुष्ठित होने पर ही साधक को अंतरंग साधना का अधिकार प्राप्त होता है।
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| 28. | ये दोनों सत्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं, और दोनों को यथार्थ रूप से मिलाकर ही पूर्णता लाभ संभव है।
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| 29. | कविता के द्वारा हम संसार के सुख, दुःख, आनन्द और क्लेश आदि यथार्थ रूप से अनुभव कर सकते हैं.
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| 30. | परन्तु मूढ़ व्यक्ति स्वयं यथार्थ रूप से परख नहीं पाता और दूसरों की बुद्धि से परिचालित होता है ।
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