लोहे के पात्र में सुशक्त जल अर्थात तेजाब का घोल इसका सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी कानाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेताहै।
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के पात्र में रखे गए सुशक्त जल (तेजाब का घोल) का सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से आच्छादित कर देता है।
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* अनानास के रस में यवक्षार, पीपल और हल्दी का चूर्ण आधा-आधा ग्राम मिलाकर सेवन करने से प्लीहा (तिल्ली), पेट के रोग रोग ठीक होता है।
24.
अजवाइन, चीता, यवक्षार, पीपलामूल, दन्ती की जड़, छोटी पीपल आदि को एक साथ 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें।
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10 मिलीलीटर मूली का रस, 10 ग्राम यवक्षार, 50 ग्राम हिंग्वाष्टक चूर्ण, 50 ग्राम सोडा बाइकार्बोनेट, 2 ग्राम नौसादर, 10 ग्राम टार्टरी को मिलाकर चूर्ण बना लें।
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मूली के बीजों का चूर्ण 6 ग्राम और ग्राम यवक्षार के साथ खाकर ऊपर से शहद और नींबू का रस मिला हुआ एक गिलास पानी पीने से शरीर की चर्बी घटती है।
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25 ग्राम की मात्रा में अग्निमथ लेकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं और जब केवल 50 मिलीलीटर काढ़ा बच जाए तो इसमें थोड़ा सा यवक्षार और सेंधानमक मिलाकर सेवन करें।
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-मदार के फूल को सुखाकर त्रिकटु (सौंठ, मरीच एवं पिप्पली) और यवक्षार के साथ मिलाकर खरल में अदरख स्वरस के साथ पीस लें और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें..
29.
शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक 5-5 ग्राम लेकर, खरल में कज्जली कर लें और उसे 30 ग्राम असली जवाखार (यवक्षार) में मिलाकर, ठीक से खरल करके रखें।
30.
अनन्नास के रस में यवक्षार, पीपल और हल्दी का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सेवन करने से प्लीहा, पेट के रोग और वायुगोला 7 दिनों में नष्ट हो जाता है।