अतः याची के प्रस्तुत साक्ष्यो से प्रत्यर्थी द्वारा उसकी वर्तमान याचिका प्रस्तुत करने के दो वर्श से उपेक्षा करते हुये अधिक निरन्तर कालावधि तक बिना किसी युक्तियुक्त कारण के एवं याची की बिना अनुमति के उसका अभित्याग किया जाना एवं याची के प्रति क्रूरता का व्यवहार किया जाना पूर्ण रूप से साबित पाया जाता है।
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याची के प्रस्तुत साक्ष्यों से प्रत्यर्थी द्वारा उसकी उपेक्षा करते हुये वर्तमान याचिका प्रस्तुत करने के दो वर्श से अधिक निरन्तर कालावधि तक बिना किसी युक्तियुक्त कारण के एवं याची की बिना अनुमति के, उसका अभित्याग किया जाना एवं याची के प्रति प्रत्यर्थी द्वारा क्रूरता का व्यवहार किया जाना एक पक्षीय रूप से साबित पाया जाता है।
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याची द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य से प्रत्यर्थी द्वारा उसकी उपेक्षा करते हुये वर्तमान याचिका प्रस्तुत करने से दो वर्श से अधिक निरन्तर कालावधि तक बिना किसी युक्तियुक्त कारण के एवं याची की बिना अनुमति के, उसका अभित्याग किया जाना एवं याची के प्रति प्रत्यर्थी द्वारा क्रूरता का व्यवहार किया जाना एक पक्षीय रूप से साबित पाया जाता है।
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याची के प्रस्तुत साक्ष्य से प्रत्यर्थी के द्वारा याची की उपेक्षा करते हुये वर्तमान याचिका प्रस्तुत करने के दो वर्श से अधिक निरन्तर कालावधि तक बिना किसी युक्तियुक्त कारण के एवं याची की बिना अनुमति के, उसका अभित्याग किया जाना एवं याची के प्रति प्रत्यर्थी द्वारा क्रूरता का व्यवहार किया जाना एक पक्षीय रूप से साबित पाया जाता है।
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अतः याची के प्रस्तुत साक्ष्य से प्रत्यर्थी द्वारा उसकी उपेक्षा करते हुये वर्तमान याचिका प्रस्तुत करने से दो वर्श से अधिक निरन्तर कालावधि तक बिना किसी युक्तियुक्त कारण के एवं याची के बिना अनुमति के प्रत्यर्थी द्वारा याची का अभित्याग किया जाना एवं याची के प्रति प्रत्यर्थी द्वारा क्रूरता का व्यवहार किया जाना एक पक्षीय रूप से साबित पाया जाता है।
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जुर्माने का है प्रावधान सुनवाई के अधिकार के तहत द्वितीय अपील अधिकारी की राय के अनुसार लोक सुनवाई अधिकारी बिना किसी पर्याप्त और युक्तियुक्त कारण से नियत समय-सीमा के भीतर सुनवाई का अवसर प्रदान करने में विफल रहता है तो उस पर पांच सौ रुपए से लेकर पांच हजार रुपए तक की पैनल्टी का प्रावधान है, जिसे लोक सुनवाई अधिकारी के वेतन से वसूला जा सकेगा।
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जिसपर एडीएम शिवपाल सिंह ने लोकसेवा गारंटी अधिनियम 2010 धारा 7 (1) (क) (ख) के प्रावधान अनुसार डीके श्रीवास्तव के द्वारा बिना पर्याप्त तथा युक्तियुक्त कारण से आवेदक के आवेदन का निराकरण न करने के लिए अधिनियम की धारा 5 (2) के तहत सेवा प्रदान करने में असफल रहने पर सीईओ पर 3 हजार रूपए की राशि अधिरोपित की है।
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हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 में प्राविधान है कि पति या पत्नी में से कोई भी पक्ष बिना किसी युक्तियुक्त कारण के एक दूसरे का परित्याग नही कर सकता और अगर किया गया है तो परित्यक्त पक्ष को अधिकार है कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत न्यायालय के माध्यम से दूसरे पक्ष के विरूद्ध इस आशय की डिक्री पारित कर सकता है कि दूसरा पक्ष आकर साथ में रहे।
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अरबों खरबों रूपये के घोटाले झेले है मेने देखा है के जब भी मत विभाजन होता है तो कुछ लोग गिनती की गणित बिगाड़ने के लियें एक पक्ष से फायदा लेकर संसद से गायब हो जाते है वोह संसद में डट कर वोटिंग नहीं करते हैं......दोस्तों किसी भी बिल पर अगर कोई भी सांसद बिना किसी युक्तियुक्त कारण के अनुपस्थित रहे तो उसे सजा देने का कोई प्रावधान नहीं है जान
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इस मामले में 7 सितंबर को फैसला सुनाया जाना था और इस बाबत स्पष्ट टीप बंदी के जेल वारंट में लिखी गई थी तथा इस बंदी को आवश्यक रूप से उपस्थित रखने का निर्देश आपको दिया गया था, लेकिन आपने बिना किसी उचित एवं युक्तियुक्त कारण के उपरोक्त बंदी को आज न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया और आपकी इस लापरवाही के कारण आज इस प्रकरण का अंतिम निराकरण नहीं हो सका तथा बंदी आपकी अनाधिकृत अभिरक्षा में है।