ऐसा ही युवा योद्धा अर्जुन भी है ; परंतु वह योगेश्वर श्रीकृष्णरूपी गुरु को पाकर स्वयं को सौभाग्यशाली भी अनुभव कर रहा है तथा अपने सामने आध्यात्मिक स्तर की दिव्य संभावनाएँ भी साकार होती देख रहा है।
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चतुर युवा योद्धा, सामने खड़े वृद्ध किंतु एकदम शांत और स्थिर प्रतिद्वंदी को देखकर समझ गया कि उसके सामने एक महान शक्ति मौजूद है और इस शक्ति का स्रोत शरीर में नहीं, बल्कि मन के भीतर कहीं है।