मान योग्य कर्म करो पर हृदय में मान की इच्छा न रखो, आप अमानी रहो, इससे आपका हृदयकमल खिलेगा, भगवान को पाने के योग्य होगा।
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और यदि हम फल के योग्य कर्म कर रहे है तो फिर हमे फल मिलेगा ही मिलेगा, इसमे इस पाखंडी के हास्यास्पद नुस्खो की क्या आवश्यकता है?
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दृढ़ अदृढ़ कर्म: कर्म की इस श्रेणी में जो कर्म आते है उनकी शांति उपायों के द्वारा की जा सकती है अर्थात ये माफ किये जाने योग्य कर्म होते हैं।
24.
अत्थं हित्वा पियग्गाही पिहेतत्तानुयोगिनं॥ अयोग्य कर्म में लगा हुआ, योग्य कर्म में न लगने वाला तथा श्रेय को छोड़कर प्रेय को ग्रहण करने वाला मनुष्य, आत्मानुयोगी पुरुष की स्पृछ करो।
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2. दृढ़ अदृढ़ कर्म:-कर्म की इस श्रेणी में जो कर्म आते है उनकी शांति उपायों के द्वारा की जा सकती है अर्थात ये माफ किये जाने योग्य कर्म होते हैं!
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मनुष्य का मन अतिवेग वाला अश्व है इसकी लगाम में ढील देते ही यह मनुष्य को प्रमथन स्वभाव वाली इंद्रियों के साथ लेकर उड़ा ले जाता है और न करने योग्य कर्म में फंसा देता है ।
27.
उसे यह अच्छी तरह से ज्ञात होता है कि प्रारब्ध कोई शून्य से टपकी वस्तु नहीं, अपितु उसी के द्वारा किये गए कर्मों (क्रिया) के फलस्वरूप उपजा प्रतिक्रियात्मक कोष है, अतः उसका रुझान अनवरत योग्य कर्म के प्रति ही रहता है।
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भावार्थ: श्री भगवान बोले-जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है॥1॥
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भावार्थ: श्री भगवान बोले-जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है॥ 1 ॥
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उसे यह अच्छी तरह से ज्ञात होता है कि प्रारब्ध कोई शून्य से टपकी वस्तु नहीं, अपितु उसी के द्वारा किये गए कर्मों (क्रिया) के फलस्वरूप उपजा प्रतिक्रियात्मक कोष है, अतः उसका रुझान अनवरत योग्य कर्म के प्रति ही रहता है।