इस सबके बाद यह ' विचित्र किन् तु सत् य ' वाली स्थिति है कि ' लखिया प्रसार ' वाले, चिकने कागजों पर भडकीली रंगीन छपाई वाले, निरर्थक और अनुपयोगी साबित हो रहे अखबारों की अपेक्षा ' हजारी प्रसार ' वाला ' जनसत् ता ' आज भी वैचारिक खुराक देने वाला उपयोगी स्रोत बना हुआ है ।