प्रकृति स्वच्छता चाहतीकृष्ण बिहारीलाल राही प्रकृति स्वच्छ है स्वच्छता चाहती, शांति सुख रम्यता चाहती सर्वदातन हृदय जल रहा, जिन्दगी जल रही,चू-चू करते करोड़ों चिता जल रही ।
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हजारीप्रसाद जी ने भाषा तथा शैली की रम्यता को निबंध लेखन में शामिल किया और उसको ध्यान में रख कर रम्य या ललित शब्द का प्रयोग किया।
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उसके चरित्र की उदात्त भावना, सुदृढ़ संकल्प, “ जीवन की नम्यता और रम्यता ” हेतु किये गए प्रयास भी सफल, सशक्त, प्रभावी और श्लाघनीय हैं।
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' वो रम्यता, वो रोचकता, वो स्मृति में पैठ जाने वाली बात आज की कहानी में कैसे आये इसके लिये हमें कथावाचन की इस परम्परा की ओर लौटना होगा।
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ब्रह्मवेला अमृत सूखता जा रहा, तत्व जीवन का जिसमें भरा था सदाप्रकृतिस्वच्छ है स्वच्छता चाहती, शांति सुख रम्यता चाही सर्वदाहम तो दुर्गन्ध में सांस है ले रहे,आज बहुतो को इसका नहंी ज्ञान है ।
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मन बहलाने का उसका यह तरीका अत्यंत स्वाभाविक और सरल था, यानी नदी के किनारे जाकर प्रकृति के सौंदर्य को देखना और वहां के वातावरण की रम्यता एवं शांति में अपने दुखों को भुलाना।
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वास्तव में कितना मनोरम है ये सब! इस परिवेश से आनन्दित होने के बाद एक प्रश्न अन्त: करण को कचोटता है कि कहीं शहरों की तरह गाँव से भी तो नहीं रम्यता छिन जाएगी??
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समाजशास्त्रीय विषय में भी लेखक ने जिस तरह रम्यता की गुंजाइश निकाली है वह साबित करता है कि यदि लेखक विशुद्ध साहित्यिक अनुशासनों पर कुछ काम करे तो वह अपनी उपस्थिति से इधर साहित्यिकि पाठकों को भी चौंका सकता है ।
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समाजशास्त्रीय विषय में भी लेखक ने जिस तरह रम्यता की गुंजाइश निकाली है वह साबित करता है कि यदि लेखक विशुद्ध साहित्यिक अनुशासनों पर कुछ काम करे तो वह अपनी उपस्थिति से इधर साहित्यिकि पाठकों को भी चौंका सकता है ।
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जीवन चर्या से लेकर रहन व सहन, अपने मनमानी ढ़ग से इन्हें पोषता ।मन के भावों-विचारों में बदबू भरी, मानव है भूलता अब नियम कायदाप्रकृतिस्वच्छ है स्वच्छता चाहती, शांति सुख रम्यता चाहती सर्वदाअपना विज्ञान चेतावनी दे रहासंभलो धरती के मानव है खतरा तुम्हें।