लेकिन दिल्ली के धर्म भीरु लोग किसी भी कार्यक्रम के बाद बचे हुए फूल, हवन सामग्री, राख आदि यमुना में बहाने के लिए आते हैं, गाड़ी रोकते हैं और बाड़ के ऊपर से उछाल कर यमुना में डाल देते हैं.
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वहां मौजूद कुछ मांस के लोथडे, एक अधजली बांह, जो अधिक लम्बी होने पर अनुमानित भगतसिंह की बांह मान ली गई और रावी नदी के किनारे थोडे से मांस, अस्थिपंजर, राख आदि की अश्रुपूरित श्रध्दांजलि के साथ पुन: अंत्येष्टि की गई।
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फ़िर इन्हें बाहर निकालकर उस पर लगी राख आदि को कपड़े से साफ़ करके, शुद्ध घी से भरी हुई एक बड़ी परात में उन्हें हल्का सा “ चीरा ” लगाकर डुबाया जाता है, इससे गरम-गरम बाफ़ले अन्दर तक घी से पूरी तरह नहा जाते हैं।
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* अनार की कली 1 ग्राम, बबूल की हरी पत्ती 1 ग्राम, देशी घी में भुनी हुई सौंफ 1 ग्राम, खसखस या पोस्त के दानों की राख आदि 3 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में 1 दिन में सुबह, दोपहर और शाम को मां के दूध के साथ पीने से बच्चों का दस्त आना बंद हो जाता है।