पिछले तीन दशक का राजनीतिक मानचित्र इस क्षेत्र से अग्रवाल वैश्य समाज व पंजाबी समुदाय का ही प्रतिनिधित्व दर्शाता है और भविष्य में भी ऐसी ही स्थिति नजर आती है।
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परमाणु विकिरण और दुर्घटनाओं के दुष्प्रभाव इतने विनाशकारी और दूरगामी होते हैं की समय के साथ राजनीतिक मानचित्र बदल जाते हैं लेकिन इंसानियत को उसकी मार झेलनी पड़ती है.
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यदि आप देखेंगे कि कैसे भारत का राजनीतिक मानचित्र बदला है तो आप निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि 2009 के शुरू में होने वाले नई संसद के चुनावों में भारत किसे चुनेगा।
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इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि यदि वैश्य, पंजाबी, ब्राह्मण, राजपूत एक प्लेटफार्म बना लेते है, तो राज्य का राजनीतिक मानचित्र तबदील हो जाएगा।
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उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत को राजनीतिक रूप से पिछड़े माने जाने वाले पहाड़ी इलाकों को देश के राजनीतिक मानचित्र पर जगह दिलाने का श्रेय जाता है.
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सिरसा क्षेत्र के राजनीतिक मानचित्र पर नजर दौड़ाने से दिखाई देता है कि इनैलो के पास अग्रवाल वैश्य समाज से पदम जैन और पंजाबी समुदाय से अमीर चावला, कृष्ण गुंबर व प्रदीप मेहता पार्षद है।
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बीसवीं सदी के शुरू में ब्रिटेन ने भारत का राजनीतिक मानचित्र खिंचा तो पूर्वोत्तर के असम, मणिपुर और त्रिपुरा को भारत में शामिल किया, तो उत्तर पूर्व के बलूचिस्तान और उत्तर पश्चिम फ्रंटीयर राज्य को भारतीय मानचित्र में शामिल किया।
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बीसवीं सदी के शुरू में ब्रिटेन ने भारत का राजनीतिक मानचित्र खिंचा तो पूर्वोत्तर के असम, मणिपुर और त्रिपुरा को भारत में शामिल किया, तो उत्तर पूर्व के बलूचिस्तान और उत्तर पश्चिम फ्रंटीयर राज्य को भारतीय मानचित्र में शामिल किया।
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पर ऐसे में कोई यह सोचे कि वामपंथ देश के राजनीतिक मानचित्र से हट जायेगा तो वह गलतफहमी का शिकार ही होगा क्योंकि देश इस समय जिस प्रकार के आर्थिक संकट से गुज़र रहा है उसका समाधान पूंजीवादी आर्थिक नीतियों द्वारा सम्भव नहीं है।
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मनमोहन सिंह ने गद्दी संभाली और अभी बने हुए हैं किंतु देश के राजनीतिक मानचित्र पर सोनिया गांधी हर तरफ छाई हुई हैं और यह लगभग तय है कि उनकी छत्रछाया में बढ़ रहे युवा नेता और कांग्रेस महासचिव रहे युवा नेता और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी आने वाले समय में देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।