अंतिम चार पंक्तियां गौर करने लायक है, जो इसका स्पष्ट संकेत करती हैं कि बाबा के लिए संघर्ष के रूपों का मामला उतना महत्वपूर्ण नहीं था, बल्कि जनता की राजनीतिक मुक्ति, सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में बदलाव यानी संपूर्ण क्रांति उनका मकसद था, और उसके लिए संघर्ष के सारे रूप उन्हें मंजूर थे।
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और इस तथ्य को समझने में ज्यादा मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि राजनीतिक मुक्ति का रास्ता भाषा की मुक्ति से होकर जाता है...रूढियों से मुक्ति, पांडित्य से मुक्ति, अंग्रेजी नहीं अंग्रेज़ियत से मुक्ति...अब अगर हिंदी का चिट्ठा जगत पहले से ही राजनीतिक मुक्ति को महसूस कर रहा हो तो यह बात अलग है...लेकिन आज भी हिंदी प्रदेश की जनता ग़ुलामी के दुष्चक्र से जूझ रही है।
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और इस तथ्य को समझने में ज्यादा मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि राजनीतिक मुक्ति का रास्ता भाषा की मुक्ति से होकर जाता है...रूढियों से मुक्ति, पांडित्य से मुक्ति, अंग्रेजी नहीं अंग्रेज़ियत से मुक्ति...अब अगर हिंदी का चिट्ठा जगत पहले से ही राजनीतिक मुक्ति को महसूस कर रहा हो तो यह बात अलग है...लेकिन आज भी हिंदी प्रदेश की जनता ग़ुलामी के दुष्चक्र से जूझ रही है।