इसके अलावा आम कांग्रेसी कार्यकर्त्ता नेहरू और इंदिरा गांधी की विचारधारा में पल कर बड़ा होता है जो राज्यवाद के पुरोधा रहे हैं उनकी नजर में हर आर्थिक बीमारी का इलाज सरकार है।
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इसके अलावा आम कांग्रेसी कार्यकर्त्ता नेहरू और इंदिरा गांधी की विचारधारा में पल कर बड़ा होता है जो राज्यवाद के पुरोधा रहे हैं उनकी नजर में हर आर्थिक बीमारी का इलाज सरकार है।
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ईश्वरवाद, भाग्यवाद वर्णवाद, वर्गवाद, पूंजीवाद, राज्यवाद, सभी के कष्ट पाना उसने अपने जीवन का अंग मान कर अंगीकृत ही नहीं अपितु अपने रोम रोम में समाहित कर लिया था।
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शिवसेना से अलग होने के बाद राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में अपनी स्वतंत्र राजनीति की स्थापना के दृष्टिगत तथाकथित महाराष्ट्र व मराठी भाशियों को लुभाने के प्रति जो आक्रामक बयानबाजियों की मुहिम चला रखी है यह बेलगाम सिथति और इससे उपजी प्रतिक्रियाएं संकीर्ण राज्यवाद को जन्म देने वाली हैं।
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जनसत्ता के 25 अगस्त 2013 के दिल्ली संस्करण में एक धुरदक्षिणपंथी सांप्रदायिक फासीवादी विचारधारा के भगवे रंग में रंगे लेखक की झूठमिश्रित टिप्पणी के साथ प्रेमचंद के एक बहुत ही यथार्थपरक लेख, “ राज्यवाद और साम्राज्यवाद ” की पुनर्प्रस्तुति कुछ इस तरह की गयी थी गोया प्रेमचंद उन्हीं की तरह घोर कम्युनिस्ट-विरोधी रचनाकार थे।
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एक और झूठ मिश्रित टिप्पणी प्रेमचंद पर चंचल चौहान जनसत्ता के 25 अगस्त 2013 के दिल्ली संस्करण में एक धुरदक्षिणपंथी सांप्रदायिक फासीवादी विचारधारा के भगवे रंग में रंगे लेखक की झूठमिश्रित टिप्पणी के साथ प्रेमचंद के एक बहुत ही यथार्थपरक लेख, “ राज्यवाद और साम्राज्यवाद ” की पुनर्प्रस्तुति कुछ इस तरह की गयी थी गोया प्रेमचंद उन्हीं [...]
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प्रेमचंद के एक लेख, ' राज्यवाद और साम्राज्यवाद ' की विकृत शीर्षक के साथ जनसत्ता के 25 अगस्त 2013 दिल्ली संस्करण में पुनर्प्रस्तुति खुद को प्रेमचंद साहित्य के इकलौते विशेषज्ञ का भ्रम पाले एक लेखक महोदय द्वारा इस तरह की गयी है मानो भारत का यह महान लेखक उन्हीं की तरह साम्यवादविरोधी और उन्हीं की तरह ' महाजनी सभ्यता का पक्षधर था।
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लेकिन पूरी उन्नीसवीं सदी के दौरान राज्यवाद के तत्व फलते-फूलते रहे और 1914 में पूरी दुनिया में इसके विस्फोट के समय तक शामिल सरकारों पर राज्यवाद की नीतियों का बोलबाला रहा. [7] हालांकि, इस सिद्धांत ने यूरोप के बाहर के देशों, साथ ही साथ एकीकरण के लिए जर्मनी और इटली में हुए युद्धों, फ्रांको-पर्सियन युद्ध और यूरोप के अन्य संघर्षों के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा छेड़े गये क्रूर औपनिवेशिक युद्धों की अनदेखी की.
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लेकिन पूरी उन्नीसवीं सदी के दौरान राज्यवाद के तत्व फलते-फूलते रहे और 1914 में पूरी दुनिया में इसके विस्फोट के समय तक शामिल सरकारों पर राज्यवाद की नीतियों का बोलबाला रहा. [7] हालांकि, इस सिद्धांत ने यूरोप के बाहर के देशों, साथ ही साथ एकीकरण के लिए जर्मनी और इटली में हुए युद्धों, फ्रांको-पर्सियन युद्ध और यूरोप के अन्य संघर्षों के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा छेड़े गये क्रूर औपनिवेशिक युद्धों की अनदेखी की.
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प्रेमचंद के लेख का शीर्षक, ' राज्यवाद और साम्राज्यवाद ' ही यह दर्शाता है कि वे इन दो तरह की राज्यव्यवस्थाओं का अंतर बता रहे हैं, राज्यवाद को हम लोग ' सामंतवाद कहते हैं, और ' साम्राज्यवाद तो वही है जिसे दुनिया के सारे शोषित अवाम और विकासशील देश अब अच्छी तरह जान चुके हैं जो आज की तारीख में सीरिया पर हमले के लिए तैयार बैठा है जिससे तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा हमारी आंखों के सामने है।