ऐसे आचार्यों में उल्लेखनीय नाट्यशास्त्र के व्याख्याता हैं रीतिवादी भट्ट उद्भट, पुष्टिवादी भट्ट लोल्लट, अनुमितिवादी शंकुक, मुक्तिवादी भट्ट नायक और अभिव्यक्तिवादी अभिनव गुप्त।
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उनकी नजर में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी भक्ति-काव्य का अनुशीलन करते हुए वैसा साहित्य विवेक विकसित किया जिस कारण वे रीतिवादी और जनविरोधी साहित्य का डटकर मुकाबला कर सके।
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यह भावुकता उस चुनौती के कारण आयी है, जो इस काल के कवि को ब्रजभाषा और ब्रजभाषा के रीतिवादी कवियों और स्वामी दयानन्द सरस्वती तथा अन्य धर्म सुधारकों और समाज व्याख्याताओं ने उसके समक्ष प्रस्तुत कर दी थी।
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साहित्य पर ‘ संवाद ' करते समय हम कठमुल्ले, रीतिवादी या रूढ़िवादी ढ़ंग से बातें करते हैं या पलायनवादी ढ़ंग से बात करते हैं? मूल सवाल यह है कि साहित्य पर कैसे ‘ संवाद ' करें?
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इन प्रयोक्ताओं ने बीच-बीच में प्रकृतिवादी अभिनय में या तो रीतिवादी (फोर्मलिस्ट्स) लोगों के विचारों का सन्निवेश किया या सन् १९१० के पश्चात् क्रोमिसारजेवस्की ने अभिनय के संश्लेषणात्मक सिद्धांतों का जो प्रवर्त्तन किया था उनका भी थोड़ा बहुत समावेश किया;
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इन प्रयोक्ताओं ने बीच-बीच में प्रकृतिवादी अभिनय में या तो रीतिवादी (फोर्मलिस्ट्स) लोगों के विचारों का सन्निवेश किया या सन् १९१० के पश्चात् क्रोमिसारजेवस्की ने अभिनय के संश्लेषणात्मक सिद्धांतों का जो प्रवर्त्तन किया था उनका भी थोड़ा बहुत समावेश किया;
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' चूंकि रीतिवादी काव्य का विषयक्षेत्र इतना संकीर्ण तथा सीमित था किउसमें मानव समाज की प्रगति और विकास के वर्णन के लिए कोई स्थान नहीं थाइसलिए द्विवेदी जी ने रीतिवादी काव्य की आलोचना की और कवियों को नए नएविषयों पर कविता लिखने के लिए प्रोत्साहित किया.
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' चूंकि रीतिवादी काव्य का विषयक्षेत्र इतना संकीर्ण तथा सीमित था किउसमें मानव समाज की प्रगति और विकास के वर्णन के लिए कोई स्थान नहीं थाइसलिए द्विवेदी जी ने रीतिवादी काव्य की आलोचना की और कवियों को नए नएविषयों पर कविता लिखने के लिए प्रोत्साहित किया.
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हिन्दी के एक तरह के आलोचकगण रीतिकाव्य की पितृसत्तावादी संस्कारों के आधार पर बुराई करते हैं और उसके स्थान पर मातृत्व और भगिनित्व के आदर्श की दुहाई देते (रीतिवादी काव्य में माता और भगिनी वाला रूप महत्वपूर्ण नहीं है, नायिका भेद वाला रूप ही महत्वपूर्ण है।
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रीतिवादी साहित्य को साहित्य की परम्परा का अंग बनाने के लिये व्याख्या के परम्परावादी-पवित्रतावादी तर्क या कलावादी सौन्दर्यानुभव का फार्मूला या यथास्थितिवादी नवीनता का तर्क अथवा दूसरे उपलब्ध विवाद कारगर नहीं हैं, बिना स्त्री के सवाल पर, सामाजिक स्थितियों के सवाल पर ठोस बात किये साहित्य की परम्परा तय नहीं की जा सकती।