उनकी अन्यायपूर्ण कारगुज़ारियों के लिए उनका एकमात्र बहाना यह था-मेरे द्वारा रुपये पैसे का याचकों और ज़रूरतमन्द लोगों में वितरण जो सहायता या दानपुण्य के रूप में किया जाता था.
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दान-दक्षिणा के संबन्ध में भी इस्लाम का लक्ष्य, केवल रुपये पैसे का दान नहीं है बल्कि क़ुरआन कहता हैः जो कुछ हमने तुम्हें दिया है उसमें से दान दो जिसमें धन-दौलत, शक्ति, ज्ञान तथा समस्त ईश्वरीय वरदान सम्मिलित हैं।
23.
जिस इकरार से रुपये पैसे का सम्बंध है उसको छोड़कर और कोई प्रतिज्ञा ऐसी नहीं है जिसके विषय में यह कहा जा सके, कि परस्पर एक दूसरे की सम्मति के बिना, दो आदमियों में से जिसकी इच्छा हो वह उस प्रतिज्ञा से अपने को मुक्त न करे।
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जहाँ लेन देन का सवाल है, रुपये पैसे का मामला है, वहाँ न दोस्ती का गुजर है, न मुरौवत का, न इन्सानियत का, बिजनेस में दोस्ती कैसी, जहाँ किसी ने इस सिद्धान्त की आड़ ली और आप लाजवाब हुए, फिर आप की जबान नहीं खुल सकती।