जिसके रवि उगें जेलों में, संध्या होवे वीरानों मे, उसके कानों में क्यों कहने आते हो? यह घर मेरा है? है नील चंदोवा तना कि झूमर झालर उसमें चमक रहे, क्यों घर की याद दिलाते हो, तब सारा रैन-बसेरा है? जब चाँद मुझे नहलाता है, सूरज रोशनी पिन्हाता है, क्यों दीपक लेकर कहते हो, यह तेरा दीपक लेकर कहते हो, यह तेरा है, यह मेरा है?
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मेरी पसंद... हनुमान-कालनेमी संवाद... राम-सिया-राम सिया-राम सिया-राम मैं तो राम ही राम पुकारूँ.... कित्थे जावे कितको आवे बाबा ने सब बेरा रे जानो हे बड़ी दूर बटेयू कर ले रैन-बसेरा रे तु क्यूँ चिंता करता है करना है सो राम करे ऎसी भगवान की मरजी है तु थोड़ा विश्राम करे राम-लखन के जीवन में नहीं होगा कभी अंधेरा रे जानो हे बड़ी दूर बटेयू कर ले रैन-बसेरा रे तुझे भूख-प्यास न लागे मैं ऎसा मंत्र बता दुँगा तुझे जिस पर्वत पर जाणा मैं एक पल में पहुँचा दुँगा स्नान-
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मेरी पसंद... हनुमान-कालनेमी संवाद... राम-सिया-राम सिया-राम सिया-राम मैं तो राम ही राम पुकारूँ.... कित्थे जावे कितको आवे बाबा ने सब बेरा रे जानो हे बड़ी दूर बटेयू कर ले रैन-बसेरा रे तु क्यूँ चिंता करता है करना है सो राम करे ऎसी भगवान की मरजी है तु थोड़ा विश्राम करे राम-लखन के जीवन में नहीं होगा कभी अंधेरा रे जानो हे बड़ी दूर बटेयू कर ले रैन-बसेरा रे तुझे भूख-प्यास न लागे मैं ऎसा मंत्र बता दुँगा तुझे जिस पर्वत पर जाणा मैं एक पल में पहुँचा दुँगा स्नान-
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PMकब ऐसा सोचा था मैंने मौसम भी छल जाएगा सावन-भादों की बारिश में घर मेरा जल जाएगा रंजोग़म की लम्बी रातों इतना मत इतराओ तुम निकलेगा कल सुख का सूरज अंधियारा टल जाएगा अक्सर बातें करता था जो दुनिया में तब्दीली की किसे ख़बर थी वो दुनिया के रंगों में ढल जाएगा नफ़रत की पागल चिंगारी कितनों के घर फूँक चुकी अगर न बरसा प्यार का बादल सारा शहर जल जाएगा दुख की इस नगरी में आख़िर रैन-बसेरा है सबका आज रवाना होगा कोई और कोई कल जाएगा देवमणि पाण्डेय
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शायद बता ही दे उस बुढ़िया की कहानी जिसका मेडन लेन की दुकानों की सीढ़ियों पर रैन-बसेरा है शायद पता हो उसे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के सामने अखबार की प्रतियाँ बाँटने वाली अश्वेत महिला की आँखों से टपकती लाचारी का कारण क्या पता सुना ही दे कॉफ़ी-बेगल का ठेला लगाने वाले मार्क के युवा बेटे के सपनों की दास्तान सी-पोर्ट पर बैठने वाले बूढ़े भिखारी की मैली-कुचैली पोटली का राज़ ही खोल दे शायद या कह उठे संघर्ष-गाथा अपनी साइकिलों के कैरियर पर पिज़ा-बर्गर और न जाने क्या-क्या डिलीवर करते हिस्पैनिक पुरुषों की.
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शायद बता ही दे उस बुढ़िया की कहानी जिसका मेडन लेन की दुकानों की सीढ़ियों पर रैन-बसेरा है शायद पता हो उसे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के सामने अखबार की प्रतियाँ बाँटने वाली अश्वेत महिला की आँखों से टपकती लाचारी का कारण क्या पता सुना ही दे कॉफ़ी-बेगल का ठेला लगाने वाले मार्क के युवा बेटे के सपनों की दास्तान सी-पोर्ट पर बैठने वाले बूढ़े भिखारी की मैली-कुचैली पोटली का राज़ ही खोल दे शायद या कह उठे संघर्ष-गाथा अपनी साइकिलों के कैरियर पर पिज़ा-बर्गर और न जाने क्या-क्या डिलीवर करते हिस्पैनिक पुरुषों की.