ऐसी मान्यता है कि सत्ययुग में महाराज रैवत ने समुद्र के मध्य की भूमि पर कुश बिछाकर कई यज्ञ किए थे।
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यहां उन्होंने रैवत के समय की कुशस्थली के पुण्यजनों को वहां से खदेड़कर जीर्णशीर्ण किले की मरम्मत करके वहां बस गए।
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बलराम के बल-वैभव और उनकी ख्याति पर मुग्ध होकर रैवत नामक राजा ने अपनी पुत्री रेवती का विवाह उनके साथ कर दिया।
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बलराम के बल-वैभव और उनकी ख्याति पर मुग्ध होकर रैवत नामक राजा ने अपनी पुत्री रेवती का विवाह उनके साथ कर दिया।
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-स्वान्यभुव, स्वरोचिष, औत्तम, रैवत, तामस, छठे चाक्षुष सातवे वैवस्वत-जो इस समय वर्तमान में है.
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एक दिन रैवत पर्वत में एक महोत्सव के आयोजन से अर्जुन ने बलपूर्वक सुभद्रा को अपने रथ पर चढ़ा कर उसका हरण कर लिया।
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एक दिन रैवत पर्वत में एक महोत्सव के आयोजन से अर्जुन ने बलपूर्वक सुभद्रा को अपने रथ पर चढ़ा कर उसका हरण कर लिया।
28.
रैवत पक्षीय सिद्धान्त के अनुसार वरनल इक्वीनोक्स (Vernal Equninox) रेवती नक्षत्र (Revati Nakshatra) के जेटापिसीयम (Zeta Pascium) तारे से टकराता है.
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इस प्रकार केवल दो साहित्यिक पुस्तकें बचीं जो वर्णनात्मक (डेस्क्रिप्टिव) हैं एक में नंद के ज्योनार का वर्णन है, दूसरे में गुजरात के रैवत पर्वत का।
30.
उनके गुरु रैवत ने उन्हें बतलाया कि भारत में केवल लंका से मूल पालि त्रिपिटक ही आ सकता है, उनकी महास्थविर महेंद्र द्वारा संकलित अट्टकथाएँ सिंहली भाषा में लंका द्वीप में विद्यमान हैं।