उन्होंने कहा कि मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सुरक्षा की स्थिति को और बेहतर बनाने के साथ साथ उत्पादक संपदाओं का निर्माण करने, पर्यावरण की रक्षा करने, ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण, गांवों से शहरों की ओर होने वाले पलायन पर अंकुश लगाने और सामाजिक समानता सुनिश्चित करने में विशेष बल दिया जा रहा है।
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अध्ययन में मुख्य तौर पर सुरक्षाकर्मियों के काम के घंटों, पारिश्रमिक, विभि न्न प्रकार के भत्तों, छुट्टियों, रोजगार सुरक्षा, उन पर लागू मुख्य श्रम कानूनों के उपबंधों के कार्यान्वयन तथा विभि न्न श्रम कानूनों के तहत अधिकारों की दृष्टि से सुरक्षा कर्मियों के बीच जागरूकता के स्तर पर आदि पर ध्यान केंद्रित किया गया।
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इन्हीं देशों में ज्यादातर ‘ फ्री ट्रेड जोन ', ‘ एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन ', ‘ स्पेशल इकोनॉमिक जोन ' भी बनाये गये हैं, जहाँ व्यवहारत: काम के घण्टे, रोजगार सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम मजदूरी, ओवरटाइम, तथा आवास, स्वास्थ्य आदि बुनियादी अधिकारों से जुड़े कानूनों का रहा-सहा अस्तित्व भी बेमानी हो चुका है।
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निस्सन्देह इस प्रकार के उद्यमों में काम करने वाली लगभग 98 प्रतिशत आबादी अनौपचारिक मजदूर के रूप में काम करती है, जिसके पास कोई रोजगार सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, श्रम कानूनों का संरक्षण, काम करने की अच्छी स्थितियाँ, न्यूनतम मजदूरी, 8 घण्टे का कार्यदिवस, पेंशन, ई. एस. आई. आदि की सुविधा मौजूद नहीं है।
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बीडी बनाने वाले, लघु उद्यागों में काम करने वाले, घरेलू कामकाज करने वाले, ठेला चलाने वाले, हम्माली करने वाले या इसी तरह के तमाम छोटे-बड़े कामों में दिन-रात पसीना बहाकर किसी तरह पेट पालने का जतन करते मजदूरों को रोजगार सुरक्षा और स्वास्थ्य-शिक्षा की सुविधाएं देना तो दूर, उल्टे उनके मुंह का निवाला भी छीना जा रहा है।
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” असंगठित / अनौपचारिक मजदूरों में वे मजदूर शामिल हैं जो अनौपचारिक क्षेत्र या पारिवारिक उद्यम में काम करते हैं, जिनमें उन नियमित मजदूरों को नहीं गिना जाना चाहिए जिनके पास नियोक्ता द्वारा प्रदान सामाजिक सुरक्षा लाभ मौजूद हैं, और साथ ही औपचारिक क्षेत्र के वे मजदूर भी शामिल हैं जिनके पास नियोक्ता द्वारा प्रदत्त रोजगार सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मौजूद हैं।
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इस गतिमान मजदूर आबादी को यान ब्रीमन ने अपनी एक प्रसिध्द और प्रशंसित रचना (फुटलूज लेबर: वर्किंग इन इण्डियाज इनफॉर्मल इकॉनमी, 1996, कैम्ब्रिज, कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी प्रेस) में फुटलूज लेबर कहा है, यानी वह मजदूर आबादी जिसके पाँव में मानो चक्का लगा होता है और किसी भी प्रकार की रोजगार सुरक्षा या सामाजिक सुरक्षा के अभाव में वह लगातार अपना पेशा बदलता रहता है।