वही तो है जिसके कारण सुकर्मों के पुण्यफल के रूप में श्री संपदा विराजित होती है, वही तो है जिसके प्रति पाप दृष्टि रखने से दरिद्रता की छाया घेर लेती है, वही तो है जो विवेकशील व्यक्ति के मन-मस्तिष्क का संतुलन बनाती है, वही तो है जो सात्विक वृत्ति वालों के मानस में श्रद्धा बनकर प्रतिष्ठित है, और वही तो है जो कुलशील वालों को लज्जाशीलता और निरभिमानता सिखाती है।