कोई लिखित कानून नहीं है, लेकिन सब लोगों को पता है कि इससे अधिक पानी नहीं निकालना है नहीं तो ये कुंए नष्ट हो जायेंगे।
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बिना कारण बताये जितना कुछ होता है, जितने फैसले किये जाते हैं, उससे कम फैसले लिखित कानून और जरूरी कारण बताकर किये जाते हैं।
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कोई लिखित कानून न होते हुए भी न्याय के नैसर्गिक सिद्धान्तों का पालन करते हुए पीड़ित पक्ष को न्याय प्रदान करना पंचायतों की विशेषता रही है।
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कुछ कानूनी विशेषज्ञ तो यह बताते हैं कि अभी भी इस देश में 95 प्रतिशत कानून उन अंग्रेजों के बनाये हैं जिनके यहां कोई लिखित कानून हैं।
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नहीं। आमतौर पर किसी देश प्रदेश या समाज में पहले से मौजूद लिखित कानून की कसौटी ही यह तय करती है कि कौन सी गतिविधि या काम कानूनी है और कौन सा गैर कानूनी।
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एक तो सिस्टम गलत तरीके से काम करता है और दूसरा न्याय के रास्ते में इतने दुराग्रह मौजूद है कि सिर्फ लिखित कानून बना देने से सही न्याय मिल जाएगा ये सिर्फ एक विभ्रम है.
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आखिरी बात यह है कि अंग्रेजी और अंग्रेजियत से मोह रखने वाले यहां हर विषय पर कानून बनाने की मांग करते हैं पर उनको पता नहीं है कि अंग्रेज कभी भी लिखित कानून पर नहीं चलते।
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एक तो सिस्टम गलत तरीके से काम करता है और दूसरा न्याय के रास्ते में इतने दुराग्रह मौजूद है कि सिर्फ लिखित कानून बना देने से सही न्याय मिल जाएगा ये सिर्फ एक विभ्रम है.
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इस तरह लिखित कानून एक ऐसा भीषण खेल है जो दैवी शक्तियां हमारे साथ खेल रही हैं ; इस खेल का मंतव्य सत्य को हमसे छिपाने का भी है और उसे हमारे सामने उद्घाटित करने का भी।
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हालांकि, अंग्रेजी लिखित कानून अन्यत्र “दिमागी कमजोरी” का प्रयोग कम अच्छी तरह से परिभाषित तरीके से करता है, जैसे उन्हें करों में छूट दी जाती है, जिसका अर्थ है कि उस मामने में व्यवहार संबंधी समस्याओं के बिना मानसिक विकलांगता है.