दरअसल लोक-हित की भावना से बनी किसी फिल्म में, या किसी साहित्यिक रचना में उठाए गए सवालों से जिन्हें तकलीफ होती है, वही लोग उन पर पाबंदी के लिए उठा-पटक करने लगते हैं.
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तब से लेकर आज तक लोकतंत्र की भावना के अनुरूप जनता के लिए, जनता के द्वारा जनता की निर्वाचित सरकारें केन्द्र और राज्यों में शासन-प्रशासन का संचालन करते हुए लोक-हित और देश-हित में काम कर रही हैं.
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को सींचने वाली सीता जड़ी भूत पदार्थों तक में कर्म की प्रेरणा जागरित कर सकती हैं, मनुष्यों की बात ही क्या है?1 लोक-हित की वेदी पर वैयक्तिक कुशल-क्षेम का बलिदान तथा दुःखियों के प्रति सहानुभूति आधुनिक प्रेमिकाओं की प्रमुख विशेषतायें हैं।
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लोक-हित पिता को घर से निकाल दिया जन-मन करूणा-सी मां को हकाल दिया स्वार्थों के टेरियर कुत्तों को पाल लिया भावना के कर्तव्य त्याग दिये, हॄदय के मन्तव्य मार डाले! बुद्धि का भाल ही फोड़ दिया, तर्कों के हाथ ही उखाड़ दिये, जम गये, जाम हुए फंस गये, अपने ही कीचड़ में धंस गये!!
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अकसर वह ऐसा अखाड़ा बन जाती है, जहाँ राजनीतिक दल अपने संकीर्ण और अदूरदर्शी उद्देश्यों के लिए बृहत्तर राष्ट्रीय और सामाजिक हितों को तिलांजलि दे देते हैं, व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं के लिए आदर्शों का बलिदान कर दिया जाता है, अपने ही सहयोगियों से षडयंत्र करके साहचर्य का गला घोंट दिया जाता है और लोक-हित के ऊँचे-ऊँचे शब्द निजी लालसाओं को पूरा करने का आवरण बन जाते हैं।
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व्यापारी, उद्योगपति, अधिकारी, इंजीनियर, नेता, वकील, डॉक्टर, दवा कम्पनियाँ, रोग-जाँच केंद्र (diagnostic centre), निजी वित्त (ऋण प्रदाता) कम्पनियाँ, निजी बीमा कम्पनियाँ, निजी दूर-संचार कम्पनियाँ, निजी शिक्षण संस्थान, अधिकांश धार्मिक संस्थाएं व अन्य बहुत से निजी संस्थान आदि आज जो भी सेवाएं दे रहे हैं, उनमें लोक-हित की भावना बहुत कम व निज-स्वार्थसिद्धि की भावना अधिक है।