अब न तो वहां कॊई धर्म का सदगुणी वाहक है और न ही जन-कल्याण की भावना, और न ही कोई ऐसा धर्माचार्य जो मौजूदा लोकतान्त्रिक इन्द्र को यानी लाल-बत्ती वालों को प्रभावित कर अच्छे या बुरे (अपने विचारों के अनुरूप) कार्य करवा सकें…यदि कुछ बचा है तो अतीत का वह रमणीक स्थल जहां कभी कल-कल बहती आदिगंगा गोमती का वह सिकुड़ा हुआ रूप जो एक सूखे नाले में परिवर्तित हो चुका है, घने वनों की जगह मात्र छोटे छोटे स्थल बचे हुए है जहां कुछ वन जैसा प्रतीत हो सकता है!
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अब न तो वहां कॊई धर्म का सदगुणी वाहक है और न ही जन-कल्याण की भावना, और न ही कोई ऐसा धर्माचार्य जो मौजूदा लोकतान्त्रिक इन्द्र को यानी लाल-बत्ती वालों को प्रभावित कर अच्छे या बुरे (अपने विचारों के अनुरूप) कार्य करवा सकें … यदि कुछ बचा है तो अतीत का वह रमणीक स्थल जहां कभी कल-कल बहती आदिगंगा गोमती का वह सिकुड़ा हुआ रूप जो एक सूखे नाले में परिवर्तित हो चुका है, घने वनों की जगह मात्र छोटे छोटे स्थल बचे हुए है जहां कुछ वन जैसा प्रतीत हो सकता है!