आजादी के बाद जिस तरह इस जंगली क्षेत्र में लोगों ने रूख किया और वन-भूमि को कृषि भूमिं में तब्दील करते चले गये वही वजह अब बाघों और अन्य जीवों के अस्तित्व को मिटा रही है।
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आजादी के बाद जिस तरह इस जंगली क्षेत्र में लोगों ने रूख किया और वन-भूमि को कृषि भूमिं में तब्दील करते चले गये वही वजह अब बाघों और अन्य जीवों के अस्तित्व को मिटा रही है।
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आजादी के बाद जिस तरह इस जंगली क्षेत्र में लोगों ने रूख किया और वन-भूमि को कृषि भूमिं में तब्दील करते चले गये वही वजह अब बाघों और अन्य जीवों के अस्तित्व को मिटा रही है।
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क्योंकि यह कानून आदिवासियों और वन-भूमि पर आश्रित लोगों के लिए की गई संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा का उल्लंघन करते हैं और उन प्रावधानों के आड़े आते हैं, जिससे आदिवासियों को अपनी जमीन ओर जीवन का हक मिलता है;
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चार अप्रैल, 1970 का ब्लिट्ज लिखता है-‘ महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में निर्णय लिया है कि तथाकथित वन-भूमि से तैंतालीस हजार आदिवासियों को बेदखल किया जाता है, जिस पर वे सदियों से खेती करते आ रहे हैं।
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क्योंकि यह कानून आदिवासियों और वन-भूमि पर आश्रित लोगों के लिए की गई संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा का उल्लंघन करते हैं और उन प्रावधानों के आड़े आते हैं, जिससे आदिवासियों को अपनी जमीन ओर जीवन का हक मिलता है ;
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मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य की वन-भूमि का वह भाग जो कि पूरी तरह से बंजर (टाँड़) है, पशुधन आदि किसी भी उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं है, उन्हें औद्य्नोगिक क्षेत्र के रुप में विकसित किया जाए।
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वह उस रमणीय उद्यान के समान नहीं जिसका सौन्दर्य पद-पद पर माली के कृतित्व की याद दिलाता है, बल्कि उस अकृत्रिम वन-भूमि की भाँति है जिसका रचयिता रचना में घुलमिल गया है।” दार्शनिक विचारों की दृष्टि से “भागवत' और ”सूरसागर' में पर्याप्त अन्तर है।
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ट) अधिनियम में प्रावधान है कि वन में रहने वाली अनुसूचित जनजाति या अन्य परंपरागत वन निवासियों के किसी सदस्य को उसके कब्जे वाली वन-भूमि से तब तक बेदखल नहीं किया जा सकेगा, जब तक पहचान और जांच की प्रक्रिया पूरी नहीं कर ली जाती।
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उसे लग रहा था कि बिल् कुल ऐसी घटना और कभी नहीं घटी होगी-सभी से ऐसा घटित हो सकता होता तो सारा समाज ही प्राणों की हिलोर से चंचल हो उठता, जैसे वसंत के एक झोंके से ही सारी वन-भूमि फूल-पल्लवों से पुलकित हो उठती है।