भाकपा-माकपा जैसी पार्टियां मौजूदे राजनीतिक व्यवस्था और उसके संविधान की वफ़ादारी से हिफ़ाज़त करती हैं और उनका विरोध ज्यादा से ज्यादा इसी व्यवस्था में कुछ सुधार लाने तक सीमित होता है।
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भाकपा-माकपा जैसी पार्टियां मौजूदे राजनीतिक व्यवस्था और उसके संविधान की वफ़ादारी से हिफ़ाज़त करती हैं और उनका विरोध ज्यादा से ज्यादा इसी व्यवस्था में कुछ सुधार लाने तक सीमित होता है।
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वर्षों वफ़ादारी से हमारा बोझ उठाता है, पर जब यह बूढ़ा, लाचार और बीमार होता है, तब हम अपनी जिम्मेदारी से भाग लेते है... इसे विवश और बीमार छोड़कर....
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उदाहरण के तौर पर हेलहेरी के गौड़ समाज के राजा ब्रिटिश समर्थक थे 1843 में ब्रिटिश सरकार ने उनकी वफ़ादारी से खुश होकर उनकों स्वर्ण पदक दिया था, उनकी 1855 में ब्रिटिश सरकार ने पदवी व जागीदारी सभी छीन ली।
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सच कहा कि ' आलोचना, रचना को उसके भौतिक आशयों में जांचने-परखने का आग्रह है, किसी भी भावुक वफ़ादारी से दूर ' यही होना भी चाहिए जिससे रचना और रचनाकार अपने पूरे कैनवास के साथ अपने पाठक के साथ संवाद करे...
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प्रेस ट्रस्ट औफ़ इण्डिया ने कई झूठी ख़बरें जारी के हैं जिन्हें इण्डियन एक्सप्रेस ने वफ़ादारी से सुर्ख़ियों में छापा है जिनमें वह ख़बर भी शामिल है जिसमें कहा गया था कि माओवादियों ने अपने द्वारा मारे गये पुलिसवालों के शवों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया था.
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यह एक भड़ौआ है कि सेना की सेना के कई मूल्यवान सदस्य, दोनों पुरुष और महिला, जो अच्छी तरह से और कई वर्षों के लिए वफ़ादारी से सेवा की है अब किया जा रहा है बाहर मजबूर है क्योंकि वे इनकार करते हैं या उनके यौन अभिविन्यास छिपाने के लिए मना कर दिया.
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नामवर जी ने अपने छोटे से भाषण में राजेंद्र जी की जिन-जिन बातों के लिए तारीफ की (सिर्फ तारीफ ही की) राजेन्द्र यादव का कोई पुश्तैनी दुश्मन भी उन बातों के लिए राजेन्द्र जी की “तारीफ़” करेगा,जरुर करेगा, सो नामवर जी भी कर गए...(खैर,जन्मदिन-नववर्ष वाले संध्या-मिलन में उपजी लाग-डान्ट को दोनों वफ़ादारी से निभाते रहे हैं).
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उस वक्त मैंने उन्हें देखा था, जब वे पहलेपहल अपनी चमकती जवानी और जिन्दगी के आदर्शों की सारी दौलत और धूप-दीप लेकर,अनोखी साहित्यिक प्रतिभा, विद्वत्ता और उग्र देशभक्ति का अर्ध्य लेकर अपने महान गुरु के चरणों पर चढ़ाने आये थे-वह गुरु जिनकी उन्होंने लगातार पचीस वर्ष तक सच्ची भक्ति और वफ़ादारी से सेवा की थी ।
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उस वक्त मैंने उन्हें देखा था, जब वे पहलेपहल अपनी चमकती जवानी और जिन्दगी के आदर्शों की सारी दौलत और धूप-दीप लेकर, अनोखी साहित्यिक प्रतिभा, विद्वत्ता और उग्र देशभक्ति का अर्ध्य लेकर अपने महान गुरु के चरणों पर चढ़ाने आये थे-वह गुरु जिनकी उन्होंने लगातार पचीस वर्ष तक सच्ची भक्ति और वफ़ादारी से सेवा की थी ।