और सबूत के लिए यदि तुम देखना ही चाहते हो तो चलो मेरे साथ में तुम्हे दिखलाता हूँ भाषा के जंगल में कविता का वह वर्जित प्रदेश जहाँ कायरता एक खाली तमंचा फ़ेंक कर भाग गयी है और साहस चन्द पके हुए बालों के साथ आगे भाग गया है-अँधेरे में धूमिल
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पवन करण की कविता कविता का वर्जित प्रदेश शीर्षक से स्त्री मेरे भीतर कविता संग्रह पर श्रीविद्या एन टी द्वारा लिखित आलोचना पुस्तक प्रकाशित हो गई है इसे जवाहर पुस्तकालय सदर बाज़ार मथुरा ने प्रकाशित किया है किताब हेतु उनसे दूरभाष क्रमांक ० ५ ६ ५ २ ४ ७ ० ३ १ ० तथा ० ९ ८ ९ ७ ००० ९ ५ १ पर संपर्क किया जा सकता है
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एक कवि के लिये इस संसार का कोई भी प्रदेश वर्जित नहीं है, बल्कि वर्जित प्रदेश के लिये कविता के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं इस दरवाजे से कोइ भी भीतर आ सकता है धूप, हवा, पानी, पक्षी या एक टूटा हुआ पत्ता (एकान्त श्रीवास्तव. आलोचना अंक नौ) या फिर एक ‘ नन्हा दिया ' ‘ उत्तर आधुनिक सभ्यता के अन्तहीन जंगल में।
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जब कविता के वर्जित प्रदेश में मैं एकबारगी कई करोड़ आदमियों के साथ घुसा तो उन तमाम कवियों को मेरा आना एक अश्लील उत्पात-सा लगा जो केवल अपनी सुविधाके लिए अफ़ीम के पानी में अगले रविवार को चुरा लेना चाहते थे अब मेरी कविता एक ली जा रही जान की तरह बुलाती है, भाषा और लय के बिना, केवल अर्थ में-उस गर्भवती औरत के साथ जिसकी नाभि में सिर्फ़ इसलिए गोली मार दी गयी कि कहीं एक ईमानदार आदमी पैदा न हो जाय।