इनमें से कुछ ईरानी विशेषताएँ ऐसी हैं, कि जिनको देखकर ' कोनो ' ने यह विचार प्रकट किया कि पैशाची में वशगली भाषा ईरानी भाषा की वर्तमानकालिक प्रतिनिधिा है।
22.
डॉ भोलानाथ तिवारी ‘हूँ ' का विकास संस्कृत की ‘भू' धातु के वर्तमानकालिक रूप से ही मानते हैं मसलन संस्कृत, पाली में भवामी > प्राकृत में होमी > अपभ्रंश में होवि > हौं > हिन्दी, हूँ।
23.
इन्होंने बिहारी के आश्रयदाता महाराज जयसिंह के मंत्री राजा आयामल्ल की आज्ञा से बिहारी सतसई की जो टीका की उसमें महाराज के लिए वर्तमानकालिक क्रिया का प्रयोग किया है और उनकी प्रशंसा भी की है।
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डॉ भोलानाथ तिवारी ‘हूँ ' का विकास संस्कृत की ‘भू' धातु के वर्तमानकालिक रूप से ही मानते हैं मसलन संस्कृत, पाली में भवामी > प्राकृत में होमी > अपभ्रंश में होवि > हौं > हिन्दी, हूँ ।
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पर ठेठ या पूरबी अवधी में कारकचिह्न प्रथम पुरुष, एकवचन की वर्तमानकालिक क्रिया के से रूप में लगता है, जैसे-' आवै कहँ ', ' खाय माँ ', ' बैठै कर '-
26.
जैसे हिन्दी और पंजाबी की अनियमित क्रियाओं के (व्यतिरेकी) तुलनात्मक अध्ययनोपरान्त कहा जा सकता है कि पंजाबी की सभी स्वरान्तक्रियाओं के वर्तमानकालिक रूपों में अनुनासिकता का आगम पाया जाता है जबकि हिन्दीमें इस प्रकार की अनुनासिकता नहीं पाई जाती.
27.
जब तक परस्मदै पदीय वर्तमानकालिक रूपों की प्राप्ति के लिए क्रमशःतिप् तस् न्तिसिप् थस थमिप वस् मसका संयोग नहीं किया जाएगा तब तक प्रयोगार्ह रूप ' धावति, धावतः, धावन्ति' या 'पिबति, पिबतः, पिबन्ति'-आदि पद प्राप्त होने के कारण रामः किम्.
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डॉ भोलानाथ तिवारी ‘ हूँ ' का विकास संस्कृत की ‘ भू ' धातु के वर्तमानकालिक रूप से ही मानते हैं मसलन संस्कृत, पाली में भवामी > प्राकृत में होमी > अपभ्रंश में होवि > हौं > हिन्दी, हूँ ।
29.
या यह कविता क्या अपने वर्तमान से इतनी निरपेक्ष है, या होना चाहती है, या कालातीत होने की अभीप्सा से भरी हुई है कि उसे महान और साथर््ाक साबित करने के लिए उसमें कालातीत होने का तत्व खोजना इतना अनिवार्य हो जाता है कि आप जैसे व्याख्याकार उसका वर्तमानकालिक अर्थ करने की बजाय सीधे उसे कालातीत ही सिद्ध कर डालना चाहते हैं? आप यह न समझें कि आप जिस भाषा और भावप्रणाली से इस कविता को देख रहे हैं,वह हिन्दी के आम (आप के शब्दों में यूरेका टाइप) पाठक के बस की बात नहीं है।
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या यह कविता क्या अपने वर्तमान से इतनी निरपेक्ष है, या होना चाहती है, या कालातीत होने की अभीप्सा से भरी हुई है कि उसे महान और साथर््ाक साबित करने के लिए उसमें कालातीत होने का तत्व खोजना इतना अनिवार्य हो जाता है कि आप जैसे व्याख्याकार उसका वर्तमानकालिक अर्थ करने की बजाय सीधे उसे कालातीत ही सिद्ध कर डालना चाहते हैं? आप यह न समझें कि आप जिस भाषा और भावप्रणाली से इस कविता को देख रहे हैं,वह हिन्दी के आम (आप के शब्दों में यूरेका टाइप) पाठक के बस की बात नहीं है।