तात्पर्य वृत्ति वास्तव में वाक्य के भिन्न भिन्न पदों (शब्दों) के वाच्यार्थ को एक में समन्वित करनेवाली वृत्ति मानी गई है अत: यह अभिधा से भिन्न नहीं, वाक्यगत अभिधा ही है।
22.
जिस सामाजिक (द्रष्टा, श्रोता या पाठक) में हास्य की इच्छा और आशा न होगी, स्वभाव में विनोदप्रियता और हास्योन्मुखता न होगी तथा बुद्धि के शब्दसंकेतों और वाक्यगत अंगों को समझने की क्षमता न होगी, समझना चाहिए कि उसके लिए हास्यरस की रचनाएँ है ही नहीं।