इस संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जीवन भर में ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम व सन्यासाश्रम का पालन करेगा.
22.
वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था (ब्रह्मचर्य, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम, संन्यासाश्रम) हमारी संस्कृति की मौलिक विशेषताएँ हैं।
23.
यज्ञ के बीचों बीच आहुति देने का प्रयोजन भी भारत के वानप्रस्थाश्रम की परंपरा का पावन स्मरण करना ही है।
24.
इसके पश्चात् वानप्रस्थाश्रम में प्रविष्ट व्यक्तियों के लिए, वैदिक वाङ्मय में, आरण्यक-साहित्य विशेष उपादेय समझा गया है।
25.
मेगस्थनीज़ के श्रमण तथा ब्राह्मण, वानप्रस्थाश्रम अथवा संन्यासियों से अधिक मेल खाते हैं, जैन और बौद्ध धर्मों से नहीं।
26.
आर्यसमाज श्राद्ध प्रथा का विरोध करता है और ऋग्वेद में उल्लिखित पितरों को वानप्रस्थाश्रम में रहने वाले जीवित लोगों के अर्थ में लेता है।
27.
आर्यसमाज श्राद्ध प्रथा का विरोध करता है और ऋग्वेद में उल्लिखित पितरों को वानप्रस्थाश्रम में रहने वाले जीवित लोगों के अर्थ में लेता है।
28.
तीसरे स्थान में वानप्रस्थाश्रम आता है जिसमें ग्रहस्थ के सभी दायित्वों को पूर्ण करने के उपरांत वन के एकांत में रहकर चिंतन-मनन करना है.
29.
वानप्रस्थाश्रम में व्यक्ति पुन: सद्शास्त्रों का अध्ययन वनों में जाकर तपस्यादि करता था ताकि गृहस्थ में रहते हुए यदि कहीं कोई गलती हो गयी हो तो उसे सुधारा जा सके।
30.
स्वामी जी से उक्त से संबंधित एक सवाल यह भी किया-प्रश्न-गृहाश्रम और वानप्रस्थाश्रम न करके संन्यासाश्रम करे उसको पाप होता है या नहीं? उत्तर-होता है और नहीं भी होता।