जैसे वायु आकाश से उत्पन्न होती है, आकाश में ही लीन हो जाती है अर्थात आकाश के सिचाय वायु की कोई पृथक स्वतंत्र सत्ता नही है।
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चलिए मान लेते हैं सब का अपना अपना महत्व है सब बराबर हैं | शरीर पृथ्वी जल वायु आकाश अग्नि सब तत्वों के यथोचित सुमेल से बना है |
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वायु अर्थात जहाँ तक ऑक्सिजन है वहाँ तक ही है उसके ऊपर से अंतरिक्ष होता है जिसे आकाश भी कह सकते हैं तो यह वायु आकाश से घिरा हुआ है।
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क्या हम पेड़ पौधौं वनस्पतियों एवं अन्य जीव जन्तुआें की रक्षा एवं संरक्षण करते हैं क्या हम जल वायु आकाश धरती अम्बर को प्रदूषण रहित स्वच्छ रख पा रहे है ।
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संत शिरोमणि कबीरदासजी कहते हैं कि माता-पिता के रज-वीर्य की बूँद से पांच तत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आकाश) के पुतले माता के गर्भ से बने हैं।
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इसलिए कदाचित प्रतिग्रह कर लेने से जो पाप हो जाते हैं उनका नाश प्राणायाम द्वारा विद्वान ब्राह्मण ऐसे ही कर डालते हैं जैसे प्रचंड वायु आकाश में रहनेवाले बादलों का नाश कर देता है।
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सभी धार्मिक शास्त्रों मे ंयह सार दिया गया है कि इन्सान का शरीर धरती अग्नि पानी वायु आकाश का मिश्रण है और छटा तत्व इसमें आत्मा है जो इस शरीर को चलाती है ।
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इसलिए कदाचित् प्रतिग्रह कर लेने से जो पाप हो जाते हैं उनका नाश प्राणायाम द्वारा विद्वान् ब्राह्मण ऐसे ही कर डालते हैं जैसे प्रचण्ड वायु आकाश में रहने वाले बादलों का नाश कर देता हैं।
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जब सृष्टि को प्रलय होती है तो पहले धरती जल में, फिर धरती और जल अग्नि में, धरती, जल और अग्नि वायु में, धरती, जल, अग्नि और वायु आकाश में सिमट जाते हैं.
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इसका कारण यह हो सकता है कि जनजाति समुदाय आदि समय से सूर्य, चन् द्रमा, अग्नि, जल, वायु आकाश, पेड पौधे इसी तरह वे पूजा किया करते थे और आज भी कर रहे है।