कहने का तात्पर्य यह है कि पांच तत्वों-प्रथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और वायु- से बनी यह देह इनके साथ सतत संपर्क में रहती है और उनके परिवर्तनों से प्रभावित होती है और इसके साथ ही उसमें मौजूद मन, बुद्धि और अहंकार की प्रकृति भी प्रभावित होती है।
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आज किसी ग्राम, नगर या जनपद विशेष में ही नहीं, किन्तु अखिल भारतीय स्तर पर ग्राम-ग्राम तथा नगर-नगर में लोक-कल्याणार्थ सामूहिक गायत्री यज्ञों में प्रसूत, सुगन्धित धूम्र वायु- मण्डल में व्याप्त होकर, सूक्ष्माकाश को स्वच्छ करता हुआ संसार को मंत्रपूत शुभ संदेश दे रहा है ।।
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भगवान शब्द के चार अक्षरों को इस प्रकार विश्लेषित किया गया है, '' भ '' भूमि (यह धीर, गंभीर जड़त्व का प्रतीक है) '' ग '' गमन अर्थात उत्सुक, खुला हुआ व विशाल सोच, '' व '' का अर्थ वायु- अर्थात चंचल व गतिशील तथा '' आ '' से अग्नि से शमन शक्ति एवम् ज्वाला से अशुभता की, '' न '' नीर एवंम् शीतल प्रवाह युक्त सरोवर।