असुरों के उपासक, जो प्राकृतिक शक्तियों के ज्ञान में आगे थे, पर रजोगुण एवं तमोगुण प्रधान थे, वारूणी पीकर मदहोश हो गए।
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इसी प्रकार कहते हैं कि अमृत बॉंटने के समय ‘राहु ' नामक असुर, जो वारूणी न पीता था, देवताओं का वेष बनाकर उनकी पंक्ति में आ बैठा।
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इसी प्रकार कहते हैं कि अमृत बॉंटने के समय ‘ राहु ' नामक असुर, जो वारूणी न पीता था, देवताओं का वेष बनाकर उनकी पंक्ति में आ बैठा।
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वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला, रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।
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वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला, रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला', देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे! किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।
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वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला, रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला', देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे! किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।
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वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला, रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला', देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे! किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।
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वारूणी (सूर्य की) मूर्त्ति की पूजा का विधान आधी रात में होने एवं तहखाने पर पड़नेवाली सूर्य आदि नवग्रहों की छाया, किरण आदि के विषय में ज्याोतिर्विदोें द्वारा गम्भीर अध्ययन अपेक्षित है।
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एक स्पष्ट कारण यह है कि वे विजेता होते हुए भी हारे हुए देवों से मिलकर समुद्र मंथन अभियान में शामिल होने के लिए सिर्फ इसलिए राजी हुए थे ताकि अमृत पा सकें न कि वारूणी.
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एक स्पष्ट कारण यह है कि वे विजेता होते हुए भी हारे हुए देवों से मिलकर समुद्र मंथन अभियान में शामिल होने के लिए सिर्फ इसलिए राजी हुए थे ताकि अमृत पा सकें न कि वारूणी.