संकल्प: ओमच्य भाद्र मासि शुक्ले पक्षे चतुर्थोयो तिथौ वत्स गोत्रस्य महेश मोहन शर्मण: धन प्राप्तिः कामः श्री उच्छिष्टगणपति प्रसाद कामश्य Om एक दंताय विद्म्हे वक्र तुण्डाय धीमहि तन्नोविघ्न प्रचोदयात इति मंत्रास्य एक विंशति माला जपं अहं करिष्ये।
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अंतस चल पड़े जीवन की डगर पर गिनते मील पत्थरों की कतार कुछ बिना गिने ही जुड़ गए आरम्भ के पत्थर बिना समझे बूझे कर गए पार! जब होश संभाला तो पाया अंको ने किया विंशति को पार.
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यत्प † चविंशतिमुखाçस्त्रदशान्तसंख्या बन्धुस्थिता नवमराशिकबिन्दवp यद्यष्टकेन सह विंशति वत्सराणा मन्ते परे शरदि वा नरवाहनाढ्य यदि चौथे भाव से नवें भाव में 25 से 30 बिन्दु हो तो व्यक्ति पालकी मे ंसवारी करता है तथा कुबेर के समान धनी होता है।
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कर रहे चपल चख थिर अभिनय हैं बोल रहे द्वय विंशति वय. हो गयी हमारी, तुम बोलो-“क्या पीया आपने पावन पय.”ना, नहीं अभी है संशयमय मम दशा, हलाहल अथवा पय मैं जान नहीं पाता सचमुच हैं कौन वस्तु जिससे हो जय. “ 'बहुजन हिताय' विष अमृतमय 'है सुधा' वासनामयी सभय.”-यह
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कर रहे चपल चख थिर अभिनय हैं बोल रहे द्वय विंशति वय. हो गयी हमारी, तुम बोलो-“क्या पीया आपने पावन पय.”ना, नहीं अभी है संशयमय मम दशा, हलाहल अथवा पय मैं जान नहीं पाता सचमुच हैं कौन वस्तु जिससे हो जय. “ 'बहुजन हिताय' विष अमृतमय 'है सुधा' वासनामयी सभय.”-यह...
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विंशति शताब्दि, धन के, मान के बाँध को जर्जर कर महाब्धि ज्ञान का, बहा जो भर गर्जन-साहित्यिक स्वर-“ जो करे गन्ध-मधु का वर्जन वह नहीं भ्रमर ; मानव मानव से नहीं भिन्न, निश्चय, हो श्वेत, कृष्ण अथवा, वह नहीं क्लिन्न ; भेद कर पंक निकलता कमल जो मानव का वह निष्कलंक, हो कोई सर ” था सुना, रहे सम्राट!