विकास-योजनाओं में इन वर्गों के प्रति थोड़ा दिखावटी प्रेम प्रदर्शित किया गया, ‘ समाजवाद ' और ‘ वितरणात्मक न्याय ' के आकर्षक नारे दिये गये।
22.
न्यायपूर्ण, समरस समाज की स्थापना हेतु वितरणात्मक न्याय के योगदान को लेकर अधिकांश विचारक एकमत हैं, हालांकि उसके कार्यान्वन को लेकर उनके किंचित मतभेद हैं.
23.
उपर्युक्त के बारे में स्वतंत्ररूप से विचार करने से पूर्व हम जान लें कि न्याय का वितरणात्मक सिद्धांत अपने आप में बहुलार्थी एवं विविध आयामी विस्तार लिए होता है.
24.
समाज में शांति और सुरक्षा की भावना पैदा करना. 2. उत्पादकता के कुल लाभों को समाज के सभी सदस्यों तक पहुंचाने की अनुकूल व्यवस्था करना अर्थात वितरणात्मक न्या य.
25.
वितरणात्मक न्याय का लक्ष्य व्यक्ति के विवेक को सम्मुनत करना भी है, ताकि व्यापक लोकहित को ध्यान में रखते हुए वह स्वयं को ऐसे अनावश्यक प्रलोभनों से दूर रख सके.
26.
राज्य की न्यायप्रियता की कसौटी और वैधता का आधार भी यही है कि समाज में मूल्यों का आवंटन करने वाली एकमात्र सत्ता के रूप में वह वितरणात्मक न्याय को किस हद तक आत्मसात कर पाता है।
27.
वितरणात्मक न्याय की की परिकल्पना समाज में ‘ अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख ' के उपयोगितावादी लक्ष्य को मूत्र्तरूप देने हेतु, सुख-संसाधनों के पक्षपातरहित बंटवारे के लक्ष्य को ध्यान में रखकर की जाती है.
28.
राज्य की न्यायप्रियता की कसौटी और वैधता का आधार भी यही है कि समाज में मूल्यों का आवंटन करने वाली एकमात्र सत्ता के रूप में वह वितरणात्मक न्याय को किस हद तक आत्मसात कर पाता है।
29.
शासन के स्तर पर होने वाले लगभग सभी परिवर्तन चाहे वे टैक्स को लेकर हों अथवा उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, आदि से संबंधित, सभी कहीं न कहीं वितरणात्मक न्याय को प्रभावित करते हैं.
30.
व्यक्ति और समाज दोनों की जिम्मेदारी उस समय तक समाप्त नहीं होती, जब तक वह व्यक्ति स्वयं-स्फूत्र्त और आत्मनिर्भरता के साथ विकास की मुख्यधारा में सम्मिलित नहीं हो जाता. यह वितरणात्मक न्याय की पहली स्थिति है.