वैमानिक शास्त्र रीडिस्कवर्ड ‘ लिया तथा अपने गहन अध्ययन व अनुभव के आधार पर यह प्रतिपादित किया कि इस ग्रंथ में अत्यंत विकसित विमान विद्या का वर्णन मिलता है।
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केवल सौभागय से एक ग्रन्थ उपलब्ध है, जो बताता है कि भारत में प्राचीनकाल में न केवल विमान विद्या थी, अपितु वह बहुत प्रगत अवस्था में भी थी ।
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अन्त में मैं आप लोगों से जानना चाहूँगा कि क्या उपरोक्त विवरण आपको ये विश्वास नहीं दिलाता कि प्राचीन काल में विमान विद्या कपोल कल्पना न होकर एक यथार्थ था।
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अन्त में मैं आप लोगों से जानना चाहूँगा कि क्या उपरोक्त विवरण आपको ये विश्वास नहीं दिलाता कि प्राचीन काल में विमान विद्या कपोल कल्पना न होकर एक यथार्थ था।
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केवल सौभाग्य से एक ग्रंथ उपलब्ध है, जो बताता है कि भारत में प्राचीन काल में न केवल विमान विद्या थी, अपितु वह बहुत प्रगत अवस्था में भी थी।
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केवल सौभागय से एक ग्रन्थ उपलब्ध है, जो बताता है कि भारत में प्राचीनकाल में न केवल विमान विद्या थी, अपितु वह बहुत प्रगत अवस्था में भी थी ।
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अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
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प्राचीन भारत में विमान विद्या थी | विमान शास्त्र की रचना महर्षि भरद्वाज ने की जिसके बारे में हम पहले ही देख चुके है | पढने के लिए यहाँ क्लिक करें |
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सामान्यतः आजकल यह माना जाता है कि पक्षियों की तरह आकाश में उड़ने का मानव का स्वप्न राइट बंधुओं ने सन् १७ दिसम्बर १९०३ में विमान बनाकर पूरा किया और विमान विद्या विश्व को पश्चिम की देन है ।
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यह तथ्य स्पष्ट रूप से इंगित करता है, कि विमान-विद्या से सम्बद्ध आज अनेक पाण्डुलिपियों के विविध कारणों से, अनुपलब्ध होेते हुए भी विमान-निर्माण में निपुण प्राचीन भारतीय शिल्पियों, विमान विद्या विशारदों का निर्माण कौशल असंदिग्ध है।