मगर वह अभी तक वहाँ उसकी छाती पर मूँग ही नहीं दल रही थी, बल्कि उसी पुरुष के साथ विलास कर रही थी, जो उसका प्रतिद्वंद्वी था।
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अभिप्राय यह है कि जब तक तू काले केशोंवाली (अर्थात् युवती) है तब तक विलास कर ले, फिर जब श्वेत केशोंवाली हो जाएगी तब तो काल के मुँह में पड़ने के लिए जल्दी जल्दी बढ़ने लगेगी।
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इस काल क्रम के बीच जो भी, जहां से प्रभाष जोशी के नाम पर नाहक बुद्धि विलास कर रहा है और अपने आप को उस पत्रकारीय परंपरा का वास्तविक उत्तराधिकारी घोषित कर रहा है वह प्रभाष परंपरा का अधिष्ठान निर्माण तो छोड़िए, उनकी परंपरा निर्मित होने से पहले ही नाश कर रहा है.
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इस काल क्रम के बीच जो भी, जहां से प्रभाष जोशी के नाम पर नाहक बुद्धि विलास कर रहा है और अपने आप को उस पत्रकारीय परंपरा का वास्तविक उत्तराधिकारी घोषित कर रहा है वह प्रभाष परंपरा का अधिष्ठान निर्माण तो छोड़िए, उनकी परंपरा निर्मित होने से पहले ही नाश कर रहा है.
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63) रोज प्रातः काल उठते ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना से चित्त को सराबोर कर दो कि: मैं शरीर नहीं हूँ | सब प्राणी, कीट, पतंग, गन्धर्व में मेरा ही आत्मा विलास कर रहा है | अरे, उनके रूप में मैं ही विलास कर रहा हूँ | भैया! हर रोज ऐसा अभ्यास करने से यह सिद्धांत हृदय में स्थिर हो जायेगा |
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63) रोज प्रातः काल उठते ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना से चित्त को सराबोर कर दो कि: मैं शरीर नहीं हूँ | सब प्राणी, कीट, पतंग, गन्धर्व में मेरा ही आत्मा विलास कर रहा है | अरे, उनके रूप में मैं ही विलास कर रहा हूँ | भैया! हर रोज ऐसा अभ्यास करने से यह सिद्धांत हृदय में स्थिर हो जायेगा |
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63) रोज प्रातः काल उठते ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना से चित्त को सराबोर कर दो कि: ‘ मैं शरीर नहीं हूँ | सब प्राणी, कीट, पतंग, गन्धर्व में मेरा ही आत्मा विलास कर रहा है | अरे, उनके रूप में मैं ही विलास कर रहा हूँ | ' भैया! हर रोज ऐसा अभ्यास करने से यह सिद्धांत हृदय में स्थिर हो जायेगा |
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63) रोज प्रातः काल उठते ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना से चित्त को सराबोर कर दो कि: ‘ मैं शरीर नहीं हूँ | सब प्राणी, कीट, पतंग, गन्धर्व में मेरा ही आत्मा विलास कर रहा है | अरे, उनके रूप में मैं ही विलास कर रहा हूँ | ' भैया! हर रोज ऐसा अभ्यास करने से यह सिद्धांत हृदय में स्थिर हो जायेगा |