हजार-पन् द्रह सौ देकर नाव में चॉंद की रौशनी में नहाती दूधिया चट्टानों के बीच नदी के चौड़े पाट में नौका विहार करना कितना रोमांचित करने वाला और मनोरम होता होगा यह अनुभव करना अभी शेष है.
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बि्लकुल सही कहा आपने हमारे व्रत् त्यौहार रितुओं को और जीवन को जीने के लिये मनुश्य को किस तरह का आचार विहार करना चाहिये इसे सम्मुख रख कर ही बनाये गये हैं मगर आज हम इन्हें उस भावना से ना मना कर केवल एक परंपरा के लिये मनाते हैं बडिया पोस्ट है आभार्
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एक अन्य लेख में हिंदू धर्म के देवी-देवताओं पर कटाक्ष करते हुए प्रेमचंद ने लिखा है कि ‘‘ ईश्वर और देवता भी मजदूरों की श्रेणी से निकल कर महाजनों और राजाओं की श्रेणी में जा पहुंचे, जिनका काम अप्सराओं के साथ विहार करना, स्वर्ग के सुख लूटना और दुखियों पर दया करना था।
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नमूने के तौर पर बह्मा का अपनी लड़की के पीछे भागना, महादेव का मोहनी के पीछे दौड़ना, इन् द्र का गौतम ऋषि की पत् नी को धर्मभ्रष् ट करना, तथा चौर-जार-शिरोमणि भगवान कृष् ण का गोपियों के साथ विहार करना, आदि पुराणों में पढ़िए और अश् लीलता की बानगी का मजा चखिए।
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मुनि प्रमाणसागर जी ने जैनों के इस विभाजन पर अपनी रचना ' जैनधर्म और दर्शन ' में विस्तार से लिखा है कि आचार्य भद्रबाहु ने अपने ज्ञान के बल पर जान लिया था कि उत्तर भारत में १ २ वर्ष का भयंकर अकाल पड़ने वाला है इसलिए उन्होंने सभी साधुओं को निर्देश दिया कि इस भयानक अकाल से बचने के लिए दक्षिण भारत की ओर विहार करना चाहि ए.
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मुनि प्रमाणसागर जी ने जैनों के इस विभाजन पर अपनी रचना ' जैनधर्म और दर्शन' में विस्तार से लिखा है कि आचार्य भद्रबाहु ने अपने ज्ञान के बल पर जान लिया था कि उत्तर भारत में १२ वर्ष का भयंकर अकाल पड़ने वाला है इसलिए उन्होंने सभी साधुओं को निर्देश दिया कि इस भयानक अकाल से बचने के लिए दक्षिण भारत की ओर विहार करना चाहिए.आचार्य भद्रबाहु के साथ हजारों जैन मुनि (श्रमण) दक्षिण की ओर वर्तमान के तमिलनाडु और कर्नाटक की ओर प्रस्थान कर गए और अपनी साधना में लगे रहे.