उड़े हुए थे जो कण, उतरे पा शुभ वर्षण, शुक्ति के हृदय से बन मुक्ता झलके ; लखो, दिया है पहना किसने यह हार बना भारति-उर में अपना, देख दृग थके! सम्राट एडवर्ड अष्टम के प्रति वीक्षण अगल:-बज रहे जहाँ जीवन का स्वर भर छन्द, ताल मौन में मन्द्र, ये दीपक जिसके सूर्य-चन्द्र, बँध रहा जहाँ दिग्देशकाल, सम्राट! उसी स्पर्श से खिली प्रणय के प्रियंगु की डाल-डाल!