आज बहुत दिनों के बाद अपने हॉस्टल के दिनों की याद ताज़ा हो आयी और इस बात के एहसास भी हुआ की चाहे कितने डी वी डी / वी सी आर / टी वी के युग आते जाते रहें फिल्मों के प्रति जो दीवानगी भरिया जनता में है वो मंद जरूर हो सकती है ख़तम नहीं हो सकती है.
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जे बा से की, अईसही कुछ सोचत रहनी ह, हेने होने देखत रहनी, बृज भाई लरकईया के बात, पिटापट, आ फटाफट वाला हिसाब देखनी ह शशि भाई के वी सी आर से पी वी आर तक के ना पुरा होखे वाला सपना बा त केहु के साईकिल से गिरल भहराईल बा त केहु के कुछ केहु के कुछ, बस हमहु कुछ ओइसने देखे खातिर पिछलका बतिया…