उस बच्ची को बारह वी के बाद सिंगापूर एयर लाइन की शिष्य वृत्ती मिली..उसे बताया ही नही गया..ये सोच कि,वहाँ न जाने क्या गुल खिलायेगी...! जो गुल उसने नही खिलाये, वो इनकी अपनी औलाद ने खिला दिए..
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भारतीय यानी सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने आप को समर्पित कर देने वाला, संकुचित वृत्ती, खुद लढाई करेगा पर दिल्ली के तख्तपर दुसरे को बिठाने वाला कुछ ऐसा चित्र हमें इन किताबो में दिखाई पढ़ता हे.
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साथी तपोति जी ने पूंजीवादी व्यवस्था वेश् यावृत्ती को सेक्स वर्कर कहकर जो मजदूर का दर्जा देने की कोशिश करता हैं उसका निषेध करते हुए इस पर युवा भारत की भूमिका ऐसे सारे अमानवीय वृत्ती के खिलाफ लढने की रहीं हैं यह स्पष् ट किया.
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जगावेगळं “ तू येतेस स्वतःहाचे ' मधुर' मन न वइसरता आणतेस वन रुपी मनाचे द्वार आमच्या भ्रमणासाठी खुले करतेस असा हा तुझा मनमोकळा स्वभाव व अशी ही तुझी वृत्ती मनातलं सगळं व्यक्त करायला भाग पाडतं कदिचत ह्यालाच जगं ”मैत्री” म्हणत असावं नातं 'मधुर' तर आहेच पण खरं सांगू तुला...