वैदूर्य, बज्र, नीलम, मोती, हीरा आदि रत्नों से अलंकृत छज्जे, वेदियां तथा फर्श जगमगा रहे थे और उन पर बैठे हुए कबूतर और मोर अनेक प्रकार के मधुर शब्द कर रहे थे।
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भारतीय मान्यता के अनुसार कुल 84 रत्न पाए जाते हैं, जिनमें माणिक्य, हीरा, मोती, नीलम, पन्ना, मूँगा, गोमेद, तथा वैदूर्य (लहसुनिया) को नवरत्न माना गया है।
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दिन: बुधवार केतु के लिए दान वस्तुएं: माषान्न, कंबल, वैदूर्य मणि, कस्तूरी, तिल, लोहा, बकरा, शस्त्र, सुवर्ण, कृष्ण पुष्प, सप्तधान्य, दक्षिणा।
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वज्रमुक्ता, पद्मराग, मरकत, इन्द्रनीली, वैदूर्य, पुष्पराग, कंकेतन, पुलक, रुधिरक्ष, भीष्म, स्फटिक तता प्रवाल इन 13 प्रकार के जवाहरातों से नागरिक के कई अलंकार बनते हैं।
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“ आचार्य वाराह मिहिर ” भावार्थ-शनि ग्रह वैदूर्य रत्न अथवा बाणफूल या अलसी के फूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है तो उस समय प्रजा के लिए शुभ फल देता है।
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दान: उड़द, कंबल, कस्तूरी, वैदूर्य मणि, लहसुनिया, काला फूल, तिल, तेल, रत्न, सोना, लोहा, बकरा, शास्त्र, सात प्रकार के अन्न, दक्षिणा।
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वैदूर्य, बज्र, नीलम, मोती, हीरा आदि रत्नों से अलंकृत छज्जे, वेदियां तथा फर्श जगमगा रहे थे और उन पर बैठे हुए कबूतर और मोर अनेक प्रकार के मधुर शब्द कर रहे थे।
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ऐसा कहा जाता है कि निम्बार्क दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के तट पर वैदूर्य पत्तन के निकट (पंडरपुर) अरुणाश्रम में श्री अरुण मुनि की पत्नी श्री जयन्ति देवी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
द्वारका के आठ राजमार्ग और सोलह चौराहे थे जिन्हें शुक्राचार्य की नीति के अनुसार बनाया गया था (' अष्टमार्गां महाकक्ष्यां महाषोडशचत्वराम् एव मार्गपरिक्षिप्तां साक्षादुशनसाकृताम् ' महाभारत सभा पर्व 38) द्वारका के भवन मणि, स्वर्ण, वैदूर्य तथा संगमरमर आदि से निर्मित थे।