संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची, केंद्र तथा राज्यों के पारस्परिक सम्बन्ध, राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार आदि से सम्बंधित प्रावधानों को धोडे बहुत परिवर्तनों के साथ जैसा था वैसा ही ले लिया गया! भारतीय संविधान में अब कुछ नया था तो वह था व्यस्क मताधिकार!!
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दूसरी गोलमेज कांफ्रेस में ' फेडरल स्ट्रक्चर कमेटी ' के सदस्य के तौर पर भारत के संविधान के प्रारूप पर विमर्श के दौरान उन्होंने व्यस्क मताधिकार का सवाल उठाते हुए कहा कि '' मत के अधिकार का अर्थ है अपनी जिन्दगी, सम्पति और आजादी की रक्षा करने का अधिकार।
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संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची, केंद्र तथा राज्यों के पारस्परिक सम्बन्ध, राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार आदि से सम्बंधित प्रावधानों को धोडे बहुत परिवर्तनों के साथ जैसा था वैसा ही ले लिया गया! भारतीय संविधान में अब कुछ नया था तो वह था व्यस्क मताधिकार!!
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दोनों का मानना था कि व्यस्क मताधिकार पर आधारित प्रतिनिधि प्रजातंत्र में ऐसे मीडियाकर लोगों का वर्चस्व हो जाता है जो औसत चालाकी, स्वार्थ-सिद्धि, आत्मा-छलावा और अहंकार के प्रतिमूर्ति होते हैं और जिनमे मानसिक अयोग्यता, नैतिक-शून्यता, भीरुता और दिखावा कूट-कूट कर भरी होती है.