एक ओर वे आधुनिक आर्य भाषाओं के हर एक रूप को संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश की विकास-यात्रा से उत्पन्न सिद्ध करते हैं, दूसरी ओर यह भी मानते हैं कि आधुनिक भाषाओं में ऐसे कई व्याकरणिक रूप हैं जो संस्कृत में थे ही नहीं ; लेकिन वे संस्कृत काल की विभिन्न प्रादेशिक बोलियों में मौजूद थे जिसका पता मध्यकालीन भाषाओं से मिलता है।