कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी कहँ 'काका', क्या नाम पायेगा ऐसा बंदा जिसने किसी संस्था का, न पचाया चंदा
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घूस माहात्म्य कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी कह काका क्या नाम पाएगा ऐसा बंदा जिसे किसी संस्था का न पचाया चंदा-काका हाथरसी
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सवाल ये उठता है कि आखिर व्यापारी अचानक शांत क्यों हो गया? जो व्यापारी माल निकालने की मोहलत मांग रहा था, उसने माल का क्या किया? साफ है कि उसने अपने लिए हुए अभिशाप स्वरूप निर्णय को वरदान में तब्दील करने की युक्ति अपना ली।
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