प्रत्येक कहानी में एक ‘सत्व ' होता है और हम इसे ‘कहानी की आत्मा' कहते हैं।‘लघुकथा' ‘कहानी की आत्मा' है, उसका ‘सत्व' है, अत: हम कह सकते हैं कि ‘लघुकथा' केवल आकारगत, शिल्पगत, शैलीगत और प्रभावगत ही नहीं, शब्दगत और सम्प्रेषणगत समस्त गुणों की कथा-रचना है।
22.
प्रत्येक कहानी में एक ' सत्व' होता है और हम इसे 'कहानी की आत्मा' कहते हैं।'लघुकथा' 'कहानी की आत्मा' है, उसका 'सत्व' है, अत: हम कह सकते हैं कि 'लघुकथा' केवल आकारगत, शिल्पगत, शैलीगत और प्रभावगत ही नहीं, शब्दगत और सम्प्रेषणगत समस्त गुणों की कथा-रचना है।
23.
चूंकि इस जटिल, निर्वैयक्तिक और यांत्रिक जीवन में हमें अभिव्यक्ति का एक ऐसा रूप चाहिए जो वर्तमान जीवन की शब्दगत अभिव्यक्ति हो, जो इसी यांत्रिक एकरसता से हमारे भावजगत का स्वातंत्र्य चुरा कर सबके सम्मुख व्यक्त करे ; तो हम क्यों न चिट्ठाकारी के इस मनोहारी रूप का आदर करें, जहाँ मनुष्य के भावजगत का स्वातंत्र्य सबसे अधिक प्रकट हुआ है ।