तब लगता है, इतना सब झेलते हुए भी तुम कितने सहज रह लेते हो-कितने निरुद्विग्न, प्रसन्न-चित् त. ' कुछ रुकी द्रौपदी, फिर बोली, ' जो बीत गया उससे मुझे क्या, सोच कर शान्त रहना चाहती हूँ पर जो बार-बार घिर आता है, निकाल नहीं पाती मन से.
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निरपराध, भोला और सर्वगुण सम्पन्न मनुष्य को अकारण कष्ट होते देख क्या मनुष्यता को शान्त रहना चाहिए अथवा इस घटना को अपने स्मृति-कोष्ठक के एक कोने में दबा देना चाहिए? एक मनुष्य का अधिकाँश समय जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में ही बीतता है, उन्हें जुटाने की उधेड़-बुन में ही लगा रहता है ।